ग्राम अचारपुरा में चल रही श्रीराम कथा का चौथा दिन, राम जन्मोत्सव प्रसंग पर जमकर नाचे श्रद्धालु , राजा दशरथ को श्राप बना वरदान

अनमोल संदेश, बैरसिया
'एक बार भूपति मन माहीं, भइ गलानि मोरे सुत नाहीं।Ó गोस्वामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरित मानस की इन चौपाइयों का सविस्तार और संगीतमय वर्णन करते हुए शनिधाम आश्रम पचोर के पीठाधीश्वर श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी रामगिरी महाराज ने समीपस्थ ग्राम अचारपुरा में चल रहे श्रीराम कथा महोत्सव के चौथे दिन शुक्रवार को कहा कि त्रेता युग में अयोध्या के राजा दशरथ यूं तो चक्रवर्ती सम्राट थे, लेकिन उन्हें सिर्फ एक ही दुख सता रहा था कि उनके कोई संतान नहीं थी। वे अपने इस दुख को सार्वजनिक रूप से प्रकट भी नहीं करते थे। एक समय जब वे अपनी तीनों रानियों के साथ देवराज इंद्र की सभा में पहुंचे तो वहां का दृश्य देखकर अत्यंत ग्लानि हुई। दरअसल इंद्र की सभा में जो सर्वोच्च आसन राजा दशरथ का था, उसकी धुलाई और सफाई की जा रही थी और सभा में चारणों के अलावा कोई देवता मौजूद नहीं था। रानियों ने इसका सबब जानना चाहा, तो चारणों ने कहा कि यह राजा दशरथ का आसन है और वे नि:संतान हैं। इसलिए जब भी वे सभा में आकर चले जाते हैं तो इस आसन को इसी प्रकार पवित्र किया जाता है। दुखी दशरथ को कोई उपाय नहीं सूझा और वे रानियों सहित सीधे कुल गुरु वशिष्ठ के आश्रम पहुंच गए। उन्होंने वशिष्ठ मुनि को अपनी सारी पीड़ा सुनाई। तब मुनि वशिष्ठ ने ऋंगी ऋषि को बुलाकर पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया, जिसके प्रभाव से उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई। जिनका नामकरण राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के नाम पर हुआ। आयोजन समिति के मुख्य यजमान हरगोविन्द मारण ने बताया कि श्रीराम कथा महोत्सव का समापन 17 अप्रैल को होगा।समीपस्थ गोरागांव में 10 अप्रैल से चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को सुप्रसिद्ध कथावाचक पं. रामजानेे महाराज(उज्जैन) ने राम जन्म के विभिन्न कारणों का सरस, सुमधुर शब्दों में संगीतमय वर्णन किया। उन्होंने कहा कि ब्राह्मण, गौर, देवता और संतजनों के हित और रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने कई बार मनुज रूप में अवतार लिये हैं। जब-जब भी धर्म की हानि और असुर समाज का आतंक हो जाता है तो प्रभु श्रीराम अवतार लेकर राक्षस कुल का नाश करते हैं। इसी तरह संत जनों की रक्षा और धर्म की पताका फहराते हुए जगत में भक्ति का संदेश देते हैं। त्रेता युग में जब रावण, कुंभकर्ण, खर-दूषण जैसे राक्षसों ने वन में तपस्या कर रहे संतों को सताया तो ऋषि-मुनियों और गौ माता ने श्रीहरि से पुकार लगाई। इस पर प्रभु श्रीराम के रूप में अवतरित श्रीहरि ने राक्षसों का नाश किया और भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
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