गुरुदत्त का पाली हिल का बंगला नंबर 48, जो कभी ‘घर’ ना बन सका जानिए क्या थी पूरी कहानी

Sep 21, 2024 - 14:58
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गुरुदत्त का पाली हिल का बंगला नंबर 48, जो कभी ‘घर’ ना बन सका जानिए क्या थी पूरी कहानी

फ़िल्में बनाने वाले पर्दे पर सपने गढ़ते हैं. मगर अक्सर ख़ुद उनका सपना एक घर का ही होता है. हर फ़िल्मस्टार की एक तमन्ना होती है- ‘एक बंगला बने न्यारा सा.मुंबई के पाली हिल का बंगला नंबर 48 जिन लोगों ने देखा वो उसकी भव्यता कभी भूल नहीं पाए. वो महान फ़िल्मकार गुरुदत्त के सपनों का घर था. गुरु और गीता दत्त का आलीशान, ऐशो-आराम वाला बंगला नंबर 48.

लेकिन ये बंगला 'घर' न बन सका. और फिर, जितनी शिद्दत से गुरुदत्त ने ये बंगला बनवाया था, उतने ही जुनून से एक दोपहर इसको विध्वंस भी कर दिया था.

गुरुदत्त पर अपनी किताब लिखते वक़्त उनकी बेमिसाल फ़िल्मों के साथ-साथ उनकी ज़िंदगी के इस पहलू ने मुझे सबसे ज़्यादा सोच में डाला था. बंगले की ये कहानी गुरुदत्त के जीवन की भी दास्तान है.1950 के दशक में मुंबई (तब बंबई) के बांद्रा (पश्चिम) में पाली हिल घने पेड़ों वाला इलाक़ा था.ढलवां पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से ही इसका नाम पाली हिल पड़ा था. उस दौर के पाली हिल में ज़्यादातर लोग कॉटेज या बंगलों में रहते थे.बंगलों के मालिक शुरू में ब्रिटिश, पारसी और कैथोलिक लोग थे. बाद में दिलीप कुमार, देव आनंद और मीना कुमारी जैसे हिन्दी फ़िल्म स्टार्स ने वहां रहना शुरू किया.वक्त बीतने के साथ साथ पाली हिल एक प्रभावशाली और महंगे इलाक़े में विकसित हो गया.

इन सबसे दूर 1925 में बंगलौर के पास पन्नमबुर में जन्मे गुरुदत्त पादुकोण का बचपन कठिन आर्थिक संघर्ष में बीता. परेशानियों का मानो कोई अंत ही नहीं था.उनकी छोटी बहन ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''पूरे बचपन हमारे पास कोई ढंग का घर नहीं था. हमारा बड़ा परिवार संसाधनों की कमी से लगातार जूझता रहता. आर्थिक रूप से वो ज़िंदगी कठिन थी.''देव आनंद का घर और गुरुदत्त का सपनाउस समय घर के बारे में सोचना तक गुरुदत्त के लिए दूर का सपना लगता था. कलकत्ता, अल्मोड़ा और पूना में शुरुआती जीवन के साल बिताने बाद क़िस्मत उन्हें खींच कर मुंबई ले आई थी.

यहां गुरुदत्त की मुलाकात हुई अपने दोस्त एक्टर देव आनंद से. उनकी दोस्ती कुछ साल पहले पूना के प्रभात स्टूडियोज़ में हुई थी जब देव भी फिल्मों में काम करने के लिए स्ट्रगल कर रहे थे.देव आनंद ने अपनी आत्मकथा 'रोमांसिंग विद लाइफ' में लिखा, ''हमने एक दूसरे से वादा किया था कि जिस दिन मैं प्रोड्यूसर बनूंगा, मैं गुरु को बतौर डायरेक्टर लूंगा और जिस दिन वो किसी फ़िल्म का डायरेक्शन करेंगे वो मुझे हीरो कास्ट करेंगे.''देव आनंद को अपना वादा याद रहा. गुरुदत्त पर दांव लगाकर उन्होंने अपनी फ़िल्म 'बाज़ी' का निर्देशन उन्हें दिया. ये गुरु की पहली फ़िल्म थी.

फ़िल्मस्टार देव आनंद का खूबसूरत घर पाली हिल में था. फ़िल्म बनने के दौरान गुरुदत्त अक्सर देव के पाली हिल बंगले में आने जाने लगे.गुरुदत्त पर अपनी किताब 'गुरुदत्त एन अनफिनिश्ड स्टोरी' की रिसर्च के समय, गुरुदत्त की बहन और मशहूर आर्टिस्ट ललिता लाजमी ने मुझे बताया था, ''वो देव आनंद के बंगले की बार-बार बेहद तारीफ़ करते. हम बैठ कर उनकी बातें बड़े चाव से सुनते. वो कहते थे घर तो ऐसा ही होना चाहिए. अपना घर होने की ललक हम सबके अंदर थी क्योंकि घर कभी था ही नहीं.''देव आनंद के घर आने-जाने के दौरान ही गुरु ने दिल में ये हसरत पाल ली थी कि अगर ज़िंदगी ने मौक़ा दिया तो वो पाली हिल में ही अपना बंगला बनवाएंगे. वो उनके सपनों का घर होगा.


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