शेख़ हसीना की सरकार गिरने के बाद क्या बांग्लादेश और पाकिस्तान क़रीब आ रहे हैं?

Sep 21, 2024 - 12:10
 0  1
शेख़ हसीना की सरकार गिरने के बाद क्या बांग्लादेश और पाकिस्तान क़रीब आ रहे हैं?

सन 1971 के इतिहास को सामने रखते हुए अगर देखा जाए तो बांग्लादेश और पाकिस्तान का संबंध हमेशा से ही एक संवेदनशील विषय रहा है.शेख़ हसीना वाजिद की पार्टी अवामी लीग के दौर में दोनों देशों के संबंध, ख़ासतौर पर युद्ध अपराध के मुक़दमों के मामले में और ख़राब हुए.लेकिन शेख़ हसीना की सरकार के ख़ात्मे के बाद होने वाले बहुत से बदलावों की तरह दोनों देशों के संबंधों में आ रहे बदलाव के बारे में भी चर्चा हो रही है.

हाल ही में बांग्लादेश में एक संगठन ने 11 सितंबर को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की बरसी भी मनाई.तो क्या पाकिस्तान के बारे में बांग्लादेश की कूटनीति में भी कोई बदलाव आएगा? पाकिस्तान की बांग्लादेश में कितनी दिलचस्पी है और पाकिस्तान से बेहतर संबंधों की बदौलत बांग्लादेश को क्या फ़ायदा हो सकता है?कई देशों की तरह पाकिस्तान ने भी प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस को देश का चीफ़ एडवाइज़र तैनात किए जाने पर बधाई दी. बांग्लादेश में पाकिस्तान का दूतावास भी काफी सक्रिय है.बांग्लादेश में तैनात पाकिस्तान के हाई कमिश्नर ने वर्तमान सरकार के सलाहकारों से मुलाक़ात की.इसके अलावा उन्होंने ख़ालिदा ज़िया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेताओं से भी मुलाक़ात की.

शहबाज़ शरीफ़ ने दी बधाई

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने बांग्लादेश के 'कार्यवाहक प्रधानमंत्री' प्रोफ़ेसर मोहम्मद यूनुस के साथ होने वाली बातचीत में दोतरफ़ा संबंधों को और बेहतर बनाने में दिलचस्पी दिखाई.पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज़ ज़ोहरा बलोच ने बीबीसी बांग्ला को बताया कि पाकिस्तान ने हमेशा बांग्लादेश के बारे में सकारात्मक रवैये को प्राथमिकता दी है.उन्होंने कहा, “कभी-कभी समस्याएं भी आई हैं लेकिन जब उन समस्याओं का हल निकालने और संबंधों को बेहतर बनाने की इच्छा हो तो हम आपसी हित में आगे बढ़ने के सभी लक्ष्य हासिल कर सकते हैं.”बांग्लादेश के मशहूर लेखक फ़हाम अब्दुल सलाम की राय है कि पिछले 15 सालों में बांग्लादेश की सरकार ने पाकिस्तान के संबंध को भारत की नज़रों से देखा और दोनों देशों के बीच संबंध सन 1971 के इतिहास के आसपास ही घूमता रहा है.

बांग्लादेश की पाकिस्तान से ‘माफ़ी’ की मांग

1971 के क़त्ल-ए-आम पर माफ़ी बांग्लादेश में हमेशा से एक महत्वपूर्ण विषय रहा है. पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान कई बार इस बारे में बात कर चुके हैं लेकिन सरकारी स्तर पर अब तक ऐसा कुछ नहीं हो सका.

इस बारे में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मुमताज़ ज़ोहरा बलोच की राय है कि सन 1971 का तकलीफ़देह इतिहास दोनों देशों में मौजूद है लेकिन यह समस्या दोनों देशों के नेताओं ने हल कर लिया और इस बारे में 1974 में एक समझौता भी हुआ.1971 के युद्ध के बाद उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या ख़ान को राष्ट्रपति पद छोड़ना पड़ा लेकिन उसके बाद ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के सत्ता में आने के बावजूद दोनों देशों के बीच कड़वाहट खत्म न हो सकी.


अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कोशिश के बाद सन 1974 में पाकिस्तान और बांग्लादेश के नेता एक दूसरे के देश के दौरे पर आए.23 फ़रवरी 1974 को उस समय के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने लाहौर में शेख़ मुजीबुर्रहमान का स्वागत किया. इस अवसर पर पाकिस्तान में बांग्लादेश का राष्ट्रगान भी बजाया गया. इससे एक दिन पहले ही पाकिस्तान बांग्लादेश को औपचारिक रूप से मान्यता दे चुका था.फिर उसी साल जून में ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने भी बांग्लादेश का दौरा किया. इस अवसर पर ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने कहा, ''पाकिस्तानी जनता आपके फ़ैसले का सम्मान करती है और पाकिस्तान सरकार बांग्लादेश की संप्रभुता व स्वतंत्रता को स्वीकार करती है.''बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत के बीच अप्रैल 1974 में एक त्रिपक्षीय समझौता भी हुआ जिसके अनुसार ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो ने बांग्लादेश की जनता से अनुरोध किया कि वह उन्हें (पाकिस्तान को) माफ़ कर दें और अतीत को बुलाकर आगे बढ़ें.शेख़ मुजीबुर्रहमान की ओर से भी अतीत को भूलकर एक नई शुरुआत करने का ज़िक्र 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की आर्काइव रिपोर्ट में भी मिलता है.जुल्फिकार भुट्टो से गले मिलते शेख़ मुजीबुर्रहमान इमेज स्रोत,Reutersइमेज कैप्शन,ज़ुल्फिकार अली भुट्टो से गले मिलते शेख़ मुजीबुर्रहमा मुमताज़ ज़ोहरा बलोच ने बताया कि उस समय दोनों नेताओं की दूरदर्शिता ने दोनों देशों को बेहतरी और आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया.

उन्होंने कहा, ''पाकिस्तान की मौजूदा पीढ़ी उस घटना के बाद पैदा हुई और वह बांग्लादेश के लोगों का बहुत सम्मान करती है. इसलिए 50-60 साल बाद इस विषय को दोबारा उठाने की ज़रूरत नहीं.''

सन 2002 में उस समय पाकिस्तान के सैनिक राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी ढाका का दौरा किया और 1971 की घटनाओं पर 'अफ़सोस' जताया लेकिन बांग्लादेश में इसे औपचारिक माफ़ी के तौर पर नहीं देखा जाता.1971 के युद्ध में जान गंवाने वाले बुद्धिजीवी मुनीर चौधरी के बेटे आसिफ़ मुनीर भी महसूस करते हैं कि माफ़ी या पाकिस्तान को शर्मिंदा करने के मामले पर ज़ोर देने की ज़रूरत नहीं.उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तानी जनता 1971 के बारे में अलग राय रखती है लेकिन ऐसा नहीं कि वह इस बारे में दुखी नहीं है.आसिफ़ मुनीर ने कहा, ''1970 के दशक में भी पाकिस्तानी कलाकारों और लेखकों ने बांग्लादेश के लिए आवाज़ उठाने की कोशिश की.''फ़हाम अब्दुल सलाम ने सन 1998 में पाकिस्तान के दौरे के अपने अनुभव की कहानी सुनाई.उन्होंने बताया कि जब उन्होंने एक टैक्सी ड्राइवर को बताया कि वह बांग्लादेश से आए हैं तो ड्राइवर ने उनसे माफ़ी मांगी.

''उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर 1971 के लिए माफ़ी मांगी. मैं इससे बहुत प्रभावित हुआ.'फ़हाम अब्दुल सलाम यह भी स्वीकार करते हैं कि पाकिस्तान में बांग्लादेश के बारे में सबका रवैया एक जैसा नहीं लेकिन उनका मानना है कि पाकिस्तान में एक 

Files

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow