ग्वालियर-चंबल में ठंडी नहीं पड़ी एट्रोसिटीज एक्ट की आग , सी एम शिवराज उठाएगें बड़े कदम
2018 के चुनाव से पहले ग्वालियर-अंचल से सुलगी आग एट्रोसिटीज एक्ट की आग पांच साल बाद भी ठंडी नहीं पड़ी है। विधानसभा चुनाव में इस अंचल के नतीजे तो यही गवाही देते हैं। पार्टी ने दोनों संभागों की 34 में से अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित सात में से पांच सीटें गंवा दी हैं। पार्टी का सबसे बड़ा झटका भिंड की गोहद सीट पर लगा है। पार्टी के अजा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल सिंह आर्य अपना चुनाव कांग्रेस के नये चेहरे केशव देशाई से महज 607 मतों से हार गए। हालांकि पार्टी ने पिछले चुनाव के मुकाबले (सात सीटें) इस चुनाव में दो गुना (18) सीटें जीतकर कांग्रेस को करारा जबाव दिया है।
पार्टी ने इस अंचल में गुना और करैरा की सीट पर जीत हासिल की है। ऐसा नहीं है कि पार्टी को एट्रोसिटीज एक्ट के नुकसान भान नहीं था। अजा वर्ग की नाराजगी दूर करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 27 मई 2023 को ग्वालियर में अजा और सवर्ण वर्ग के नेताओं के साथ दो बैठकें कीं। सीएम ने अलग-अलग बैठकों में अनुसूचित जाति और सवर्ण समाज के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। उसके बाद सीएम ने कहा कि “आज सामाजिक समरसता के नए युग का प्रारंभ हो रहा है.” ग्वालियर-चंबल संभाग में दोनों समाजों ने इच्छा प्रकट की है कि उनके बीच खाई नहीं रहनी चाहिए, इसलिए जल्द ही हिंसा के दौरान बने प्रकरणों को खत्म करने के लिए सरकार ठोस कदम उठाएगी। बैठक के बाद सीएम ने कहा कि 2 अप्रैल 2018 की घटना से जो वैमनस्यता पैदा हुई थी, समरसता टूटी थी, उस खाई को समाप्त किया जाए।
सीएम ने कहा था– मां के दूध में दरार नहीं डालनी चाहिए, दिलों को एक होना चाहिए। आज मेरे मन में एक संतोष है कि हमारा समाज टूटेगा नहीं। हम मिलकर साथ चलेंगे। गुना और करैरा जीती भाजपा: ग्वालियर-अंचल से अजा वर्ग के आरक्षित सीटों में भाजपा को शिवपुरी की करैरा व गुना सीट से जीत नसीब हुई है। गुना से भाजपा के पन्नालाल शाक्य यह चुनाव 66454 वोटों से जीते और करैरा से रमेश खटीक ने 3103 ये यह चुनाव जीता।
दो अप्रैल 2018 को हुई हिंसा के बाद ग्वालियर में दोनों वर्गों के लोगों पर सर्वाधिक 98 केस दर्ज हुए थे। भिंड, मुरैना, शिवपुरी, श्योपुर में भी 50 से ज्यादा केस दर्ज हैं। बता दें, पूरे ग्वालियर चंबल अंचल में हिंसा के दौरान 7 लोगों की मौत हुई थी। 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। हिंसा के बाद ग्वालियर चंबल कई दिनों तक कर्फ्यू की चपेट में रहा। इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई थीं।
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