फडणवीस की चंद दिनों की सरकार से शिंदे-अजित की बगावत जानिए

महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हलचल तेज हो गई है। चुनाव आयोग की टीम महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारियों का जायजा लेने के लिए राज्य के दो दिवसीय दौरे पर है। आयोग दो दिन तक राज्य में चुनावी तैयारी की समीक्षा करेगा। वहीं दूसरी ओर तमाम सियासी दल भी अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं ने हाल में राज्य का दौरा किया है। राज्य के दोनों प्रमुख गठंबधनों महायुति और महाविकास अगाड़ी चुनावी कवायद में जुट गए हैं।
महाराष्ट्र में फिलहाल महायुति की सरकार है जिसमें भाजपा, शिवसेना और एनसीपी शामिल हैं। 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की राजनीति में बहुत कुछ बदल चुका है। 2019 में साथ मिलकर चुनाव लड़ीं भाजपा और शिवसेना को नतीजों में बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री के मुद्दे पर दोनों दलों का गठबंधन टूट गया। इसके बाद राज्य में कई राजनीतिक उठापटक हुई। चुनाव नतीजों के बाद राज्य तीन अलग-अलग गठबंधनों की सरकारें देख चुका है। कभी सुबह का सूरज उगने से पहले सरकार का शपथ ग्रहण हुआ तो कभी सरकार में शामिल सबसे बड़े दल में टूट के बाद नई सरकार बनी। कभी शिवसेना में बगावत हुई तो कभी एनसीपी में बगावत हुई। इन पांच वर्षों में राज्य के सभी प्रमुख दलों ने सत्ता का सुख भोगा। राज्य में बड़े राजनीतिक दलों की संख्या भी चार से बढ़कर छह हो गई। आइए जानते हैं राज्य में बीते पांच साल में हुए सियासी उठापटक के बारे में..
पहले जानते हैं 2019 में नतीजे क्या थे?
21 सितंबर 2019 को चुनाव आयोग ने राज्य में विधानभा चुनावों का एलान किया। इस चुनाव में मुख्य मुकाबला दो प्रमुख गठबंधनों के बीच था। पहला भाजपा और शिवसेना का गठबंधन जिसकी उस वक्त सरकार थी। वहीं, विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस और एनसीपी शामिल थे। महाराष्ट्र में 288 सदस्यीय विधानसभा के लिए 21 अक्तूबर, 2019 को वोट डाले गए। 24 अक्तूबर, 2019 को मतगणना कराई गई थी। जब नतीजे आए तो 288 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिलीं। वहीं, भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना को 56 सीटें आई थीं। इस तरह इस गठबंधन को कुल 161 सीटें मिलीं, जो बहुमत के आंकड़े 145 से काफी ज्यादा था। दूसरी ओर एनसीपी को 54 सीटें जबकि उसकी सहयोगी कांग्रेस को 44 सीटें मिलीं।
नतीजों के बाद ही शुरू हो गया सियासी संकट
विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद नई सरकार के गठन को लेकर राज्य में राजनीतिक संकट खड़ा गया। दरअसल, मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना और भाजपा में ठन गई। विवाद इतना बढ़ा कि शिवसेना ने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया। कई दिनों तक राज्य में उहापोह की स्थिति बनी रही। राज्य में कोई सरकार बनते न देख महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
कुछ दिन बाद अचानक आधी रात को राष्ट्रपति शासन हटा लिया गया और 23 नवंबर 2019 की अल सुबह देवेंद्र फडणवीस ने राज्य के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। उनके साथ अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। हालांकि, भाजपा बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक संख्या हासिल करने में नाकाम रही। तीन दिन के बाद फडणवीस और अजित पवार ने इस्तीफा दे दिया। इससे एक बार फिर राज्य में सियासी संकट खड़ा हो गया।
यह राजनीतिक संकट तब समाप्त हुआ जब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच चर्चा के बाद एक नए गठबंधन, महाविकास अघाड़ी (एमवीए) का गठन हुआ। नए सियासी समीकरण के बाद 28 नवंबर, 2019 को उद्धव ठाकरे ने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
चुनाव के ढाई साल बाद हुई बड़ी सियासी उठापटक
नवंबर 2019 से मई 2022 तक एमवीए सरकार चली। 2022 में हुए विधान परिषद चुनाव के दौरान कुछ ऐसी स्थिति बनी जिसके कारण राज्य राज्य में एक बार फिर सियासी संकट खड़ा हो गया। दरअसल, जून 2022 में महाराष्ट्र में विधान परिषद की 10 सीटों पर चुनाव हुए। इसके लिए 11 उम्मीदवार मैदान में थे। एमवीए की तरफ से शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन ने छह उम्मीदवार उतारे थे तो भाजपा ने पांच। खास बात ये है कि शिवसेना गठबंधन के पास सभी छह उम्मीदवारों को जिताने के लिए पर्याप्त संख्या बल था, लेकिन वह एक सीट हार गई। इन पांच में कांग्रेस को केवल एक सीट मिली और एनसीपी-शिवसेना के खाते में दो-दो सीटें आईं।
वहीं, भाजपा के पास केवल चार सीटें जीतने भर की संख्या बल थी, लेकिन पांचवीं सीट भी निकालने में पार्टी सफल रही। एमएलसी चुनाव में बड़े पैमाने पर क्रॉस वोटिंग हुई। इसके बाद महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री एकनाथ शिंदे के साथ कई विधायक पहले गुजरात फिर असम चले गए। कई दिन चले सियासी ड्रामे के बाद उद्धव ठाकरे ने 29 जून, 2022 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे भाजपा के समर्थन से 30 जून, 2022 को मुख्यमंत्री बन गए।
करीब एक साल बाद महाराष्ट्र में एक बार फिर सियासी उठापटक हुई। 2 जुलाई 2023 को, अजित पवार के नेतृत्व में एनसीपी का समूह भाजपा-शिवसेना गठबंधन में शामिल हो गया। इसके साथ ही महायुति में सरकार में अजित ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। अजित के साथ एनसीपी के कुल आठ विधायकों ने मंत्री के तौर पर शपथ ली थी।
अजित और शिंदे को मिला अपनी-अपनी पार्टियों का नाम और निशान
2022 में शिवसेना और 2023 में एसीपी में बगावत हुई। इसके बाद दोनों दलों के दो टुकड़े हो गए। शिवसेना में बगावत के बाद पार्टी के ज्यादातर विधायक और सांसद एकनाथ शिंदे के साथ चले गए। पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न को लेकर शिंदे और उद्धव गुट की लड़ाई कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग तक में चली। लंबी लड़ाई के बाद पार्टी का नाम और निशान शिंदे गुट को मिल गया। वहीं, उद्धव गुट की शिवसेना का नाम शिवसेना (यूबीटी) हो गया। इसी तरह अजित वार और शरद पवार गुट में हुई लड़ाई में एनसीपी का नाम और चुनाव
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