कर्ज में डूबा किसान खेती से बना करोड़पति:13 लाख कर्ज लिया, अब सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर; 45 लोगों को दिया रोजगार
कर्ज में डूबा किसान खेती से बना करोड़पति:13 लाख कर्ज लिया, अब सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर; 45 लोगों को दिया रोजगार
दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार आपको एक ऐसे युवा किसान से मिलवाते हैं, जिन्होंने 23 एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर, 6 पॉली हाउस स्थापित किए और 45 लोगों को रोजगार दिया। छिंदवाड़ा जिले के बदनूर गांव में युवा किसान राहुल देशमुख ने मेहनत और नवीन तकनीकों से न केवल 13 लाख के कर्ज से मुक्ति पाई, बल्कि आज वे सालाना 2 करोड़ रुपए की कमाई भी कर रहे हैं। पिता की अचानक मृत्यु के बाद कर्ज में डूबे राहुल ने हार नहीं मानी। उन्होंने लहसुन और टमाटर की खेती से शुरुआत की और फिर सब्जियों के पौधों का व्यवसाय शुरू किया। आज उनकी नर्सरी मध्यप्रदेश के 12 जिलों और महाराष्ट्र के 8 जिलों में पौधे सप्लाई करती है। कर्ज में डूबा किसान बना लखपति, मेहनत से बदली किस्मत
मेहनत और लगन अगर साथ हो तो किस्मत भी कदम चूमती है। बदनूर गांव के किसान राहुल देशमुख की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। कभी कर्ज के बोझ तले दबे इस किसान ने अपनी सूझबूझ और मेहनत से आज लाखों का कारोबार खड़ा कर लिया है। राहुल देशमुख ने आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर पढ़ाई के साथ 2012 में बिजली फिटिंग का काम शुरू किया। 2013 में B.Sc (Ag) की पढ़ाई पूरी हुई और 2014 में सीड कंपनी में 13 हजार रुपए की नौकरी शुरू कर दी, लेकिन वे दिल से तो किसान ही थे, इसलिए नौकरी के साथ खेती में भी हाथ आजमाते रहे। पिता की मौत के बाद बदल गई जिंदगी
2019 में पिता काे दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया। पिता की मौत ने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी। खेती बचाने के लिए लाखों का कर्ज लिया और लहसुन, टमाटर की खेती शुरू की। कर्ज काफी ज्यादा था, खेती में नुकसान होता तो हालात और बेकार हो जाते, इस बात का भी डर सता रहा था। हालांकि मेहनत रंग लाई और लहसुन की फसल ने अच्छा मुनाफा दिया। पहले ही साल करीब 1 करोड़ रुपए का लहसुन बेचा। इतना ही नहीं टमाटर से भी 25 लाख रुपए का फायदा हुआ। इससे सारा कर्ज उतर गया। किसान राहुल देशमुख से दैनिक भास्कर ने बातचीत की। इसमें उन्होंने शुरुआत से लेकर अभी तक का अपना सफर विस्तार से बताया। आइए जानते हैं कैसे उन्होंने खेती को लाभ का धंधा बनाया... यह आइडिया कैसे और कहां से आया?
हम आर्थिक रूप से कमजोर थे, इसलिए मैंने बिजली फिटिंग का काम किया। पढ़ाई पूरी हुई तो एक कंपनी से जुड़ा और सीड बेचे। मैं जब जॉब करता था तो वहां बहुत कुछ चलता रहता था। ऑफिस और बाहर लोगों से मिलता तो यही लगता कि कुछ अपना करना चाहिए। पिता जी के निधन के बाद मैंने कुछ अपना करने का मन बनाया। जॉब छोड़कर खेती में जुट गया। शुरुआत तो करनी थी, लेकिन रुपए की कमी, ऊपर से 23 एकड़ में 6 एकड़ को छोड़कर बाकी की बंजर जमीन। मैंने इसी जमीन को सींचने का प्लान तैयार किया। शुरुआत की तो उधारी 13 लाख रुपए तक पहुंच गई। आज मेहनत कर खेती के व्यापार से मेरे पास 41 एकड़ जमीन हो चुकी है। किसान से सफलता की कहानी जानिए... खेती को किस प्रकार लाभ का धंधा बनाया?
वैसे तो मेरा मुख्य काम खेती का ही है। लहसुन और टमाटर से मुनाफा हुआ तो इसमें और अधिक प्रयोग का आइडिया खोजा। पता चला कि किसानों को पौधों के लिए संघर्ष करना होता है। इसके बाद मैंने सब्जी और फलों के पौधों का व्यवसाय शुरू किया। टमाटर, मिर्च, तरबूज, करेला, शिमला मिर्च, तरबूज, खरबूज जैसे पौधों को नर्सरी में उगाया। इसके बाद इसकी सप्लाई शुरू की। वे कहते हैं कि खेती के लिए 6 पॉली हाउस तैयार किए हैं। एक और बन रहा है। जमीन का रकबा भी बढ़कर 41 एकड़ हो गया है। पानी की समस्या हल करने के लिए 2 बोर और 6 कुएं खुदवाए हैं। पौधे कहां-कहां सप्लाई करते हैं?
मध्यप्रदेश के 12 जिले और महाराष्ट्र के 8 जिलों में किसान हमारी नर्सरी से पौधे लेकर जाते हैं। प्रदेश में लखनादौन, नरसिंहपुर, सिवनी, छपारा, मंडला के अलावा भी दूसरे जिलों के किसानों से ऑर्डर मिलता है। पौधों की कीमत अलग-अलग है। जैसे टमाटर 1.50 रुपए, करेला 4 और बैंगन पौधे के लिए किसान को 6 रुपए तक चुकाने होते हैं। हम किसानों का ऑर्डर 25 से 30 दिन में पहुंचा देते हैं। किसानों के लिए नया प्रोजेक्ट तैयार किया
दूसरों की खेती देखकर मैंने भी पॉली हाउस तैयार करने का मन बनाया, जिसमें करीब 21 लाख का कर्ज हुआ। खेत में लहसुन और अन्य फसल उगाने में कुल 35 लाख की लागत आई। ऊपर वाले का सहयोग रहा और अच्छा मुनाफा हुआ। खेती से जो पैसा मिला, पूरा बिजनेस में लगा दिया। आज मेरा ढाई करोड़ से ज्यादा का प्रोजेक्ट बनकर तैयार हो रहा है। लहसुन के साथ टमाटर करीब 60 लाख में बिका। शिमला मिर्च से 30 लाख की कमाई हुई। इसी पैसे को मैंने खेती के कार्य में लगाया अब नया प्रोजेक्ट लेकर आ रहा हूं, इसमें जिन किसानों के पौधे खड़े मर जाते हैं, उनके लिए मैं ग्राफ्टिंग पॉली हाउस बना रहा हूं। आधुनिक मशीन में कितनी लागत आई?
जब मैंने इसकी शुरुआत की थी, उस समय गुजरात से जो मशीन आई थी, वह 30 हजार रुपए की थी, जिससे मैं 600 कैरेट पौधे निकाल पाता था। बाद में मैंने नासिक से इलेक्ट्रिक मशीन मंगवाई। अब 2500 से 3000 पौधे प्रतिदिन निकलने की कैपेसिटी हो गई है। इस मशीन के लिए मुझे करीब 18 लाख रुपए खर्च करने पड़े हैं। इसके अलावा बिजली की लाइन बिछाने में करीब 5 लाख का खर्च आया। मिट्टी की जगह कोकोपीट में डालते हैं सीड्स
नारियल की छिलके से कोकोपीट की शीट तैयार होती है। मिट्टी की जगह कोकोपीट में सीड्स को इसलिए डालते हैं, क्योंकि मिट्टी में बीज डालने से बीमारी लगने की आशंका रहती है। कोकोपीट में गैप होने के कारण बीजों को पर्याप्त हवा मिलती है, जिससे बीज का अच्छा अंकुरण होता है। इस पद्धति में 90% से ज्यादा सीड्स का अंकुरण होता है। बीज अंकुरित होने के बाद पॉली हाउस में बिछाते हैं
कोकोपीट खाद को ट्रे में भर कर उसमें सीड डालते हैं। फिर इसे जर्मीनेशन रूम में बीज की टाइमिंग के अनुसार रख देते हैं। अंकुरित होने के बाद पॉली हाउस में लाकर बिछाते हैं। फिर रोजाना इसे देखना पड़ता है कि इरिगेशन कितना लग रहा है, कौन से खाद की जरूरत है, बीमारी तो नहीं है या की
दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार आपको एक ऐसे युवा किसान से मिलवाते हैं, जिन्होंने 23 एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बनाकर, 6 पॉली हाउस स्थापित किए और 45 लोगों को रोजगार दिया। छिंदवाड़ा जिले के बदनूर गांव में युवा किसान राहुल देशमुख ने मेहनत और नवीन तकनीकों से न केवल 13 लाख के कर्ज से मुक्ति पाई, बल्कि आज वे सालाना 2 करोड़ रुपए की कमाई भी कर रहे हैं। पिता की अचानक मृत्यु के बाद कर्ज में डूबे राहुल ने हार नहीं मानी। उन्होंने लहसुन और टमाटर की खेती से शुरुआत की और फिर सब्जियों के पौधों का व्यवसाय शुरू किया। आज उनकी नर्सरी मध्यप्रदेश के 12 जिलों और महाराष्ट्र के 8 जिलों में पौधे सप्लाई करती है। कर्ज में डूबा किसान बना लखपति, मेहनत से बदली किस्मत
मेहनत और लगन अगर साथ हो तो किस्मत भी कदम चूमती है। बदनूर गांव के किसान राहुल देशमुख की भी कुछ ऐसी ही कहानी है। कभी कर्ज के बोझ तले दबे इस किसान ने अपनी सूझबूझ और मेहनत से आज लाखों का कारोबार खड़ा कर लिया है। राहुल देशमुख ने आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर पढ़ाई के साथ 2012 में बिजली फिटिंग का काम शुरू किया। 2013 में B.Sc (Ag) की पढ़ाई पूरी हुई और 2014 में सीड कंपनी में 13 हजार रुपए की नौकरी शुरू कर दी, लेकिन वे दिल से तो किसान ही थे, इसलिए नौकरी के साथ खेती में भी हाथ आजमाते रहे। पिता की मौत के बाद बदल गई जिंदगी
2019 में पिता काे दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया। पिता की मौत ने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी। खेती बचाने के लिए लाखों का कर्ज लिया और लहसुन, टमाटर की खेती शुरू की। कर्ज काफी ज्यादा था, खेती में नुकसान होता तो हालात और बेकार हो जाते, इस बात का भी डर सता रहा था। हालांकि मेहनत रंग लाई और लहसुन की फसल ने अच्छा मुनाफा दिया। पहले ही साल करीब 1 करोड़ रुपए का लहसुन बेचा। इतना ही नहीं टमाटर से भी 25 लाख रुपए का फायदा हुआ। इससे सारा कर्ज उतर गया। किसान राहुल देशमुख से दैनिक भास्कर ने बातचीत की। इसमें उन्होंने शुरुआत से लेकर अभी तक का अपना सफर विस्तार से बताया। आइए जानते हैं कैसे उन्होंने खेती को लाभ का धंधा बनाया... यह आइडिया कैसे और कहां से आया?
हम आर्थिक रूप से कमजोर थे, इसलिए मैंने बिजली फिटिंग का काम किया। पढ़ाई पूरी हुई तो एक कंपनी से जुड़ा और सीड बेचे। मैं जब जॉब करता था तो वहां बहुत कुछ चलता रहता था। ऑफिस और बाहर लोगों से मिलता तो यही लगता कि कुछ अपना करना चाहिए। पिता जी के निधन के बाद मैंने कुछ अपना करने का मन बनाया। जॉब छोड़कर खेती में जुट गया। शुरुआत तो करनी थी, लेकिन रुपए की कमी, ऊपर से 23 एकड़ में 6 एकड़ को छोड़कर बाकी की बंजर जमीन। मैंने इसी जमीन को सींचने का प्लान तैयार किया। शुरुआत की तो उधारी 13 लाख रुपए तक पहुंच गई। आज मेहनत कर खेती के व्यापार से मेरे पास 41 एकड़ जमीन हो चुकी है। किसान से सफलता की कहानी जानिए... खेती को किस प्रकार लाभ का धंधा बनाया?
वैसे तो मेरा मुख्य काम खेती का ही है। लहसुन और टमाटर से मुनाफा हुआ तो इसमें और अधिक प्रयोग का आइडिया खोजा। पता चला कि किसानों को पौधों के लिए संघर्ष करना होता है। इसके बाद मैंने सब्जी और फलों के पौधों का व्यवसाय शुरू किया। टमाटर, मिर्च, तरबूज, करेला, शिमला मिर्च, तरबूज, खरबूज जैसे पौधों को नर्सरी में उगाया। इसके बाद इसकी सप्लाई शुरू की। वे कहते हैं कि खेती के लिए 6 पॉली हाउस तैयार किए हैं। एक और बन रहा है। जमीन का रकबा भी बढ़कर 41 एकड़ हो गया है। पानी की समस्या हल करने के लिए 2 बोर और 6 कुएं खुदवाए हैं। पौधे कहां-कहां सप्लाई करते हैं?
मध्यप्रदेश के 12 जिले और महाराष्ट्र के 8 जिलों में किसान हमारी नर्सरी से पौधे लेकर जाते हैं। प्रदेश में लखनादौन, नरसिंहपुर, सिवनी, छपारा, मंडला के अलावा भी दूसरे जिलों के किसानों से ऑर्डर मिलता है। पौधों की कीमत अलग-अलग है। जैसे टमाटर 1.50 रुपए, करेला 4 और बैंगन पौधे के लिए किसान को 6 रुपए तक चुकाने होते हैं। हम किसानों का ऑर्डर 25 से 30 दिन में पहुंचा देते हैं। किसानों के लिए नया प्रोजेक्ट तैयार किया
दूसरों की खेती देखकर मैंने भी पॉली हाउस तैयार करने का मन बनाया, जिसमें करीब 21 लाख का कर्ज हुआ। खेत में लहसुन और अन्य फसल उगाने में कुल 35 लाख की लागत आई। ऊपर वाले का सहयोग रहा और अच्छा मुनाफा हुआ। खेती से जो पैसा मिला, पूरा बिजनेस में लगा दिया। आज मेरा ढाई करोड़ से ज्यादा का प्रोजेक्ट बनकर तैयार हो रहा है। लहसुन के साथ टमाटर करीब 60 लाख में बिका। शिमला मिर्च से 30 लाख की कमाई हुई। इसी पैसे को मैंने खेती के कार्य में लगाया अब नया प्रोजेक्ट लेकर आ रहा हूं, इसमें जिन किसानों के पौधे खड़े मर जाते हैं, उनके लिए मैं ग्राफ्टिंग पॉली हाउस बना रहा हूं। आधुनिक मशीन में कितनी लागत आई?
जब मैंने इसकी शुरुआत की थी, उस समय गुजरात से जो मशीन आई थी, वह 30 हजार रुपए की थी, जिससे मैं 600 कैरेट पौधे निकाल पाता था। बाद में मैंने नासिक से इलेक्ट्रिक मशीन मंगवाई। अब 2500 से 3000 पौधे प्रतिदिन निकलने की कैपेसिटी हो गई है। इस मशीन के लिए मुझे करीब 18 लाख रुपए खर्च करने पड़े हैं। इसके अलावा बिजली की लाइन बिछाने में करीब 5 लाख का खर्च आया। मिट्टी की जगह कोकोपीट में डालते हैं सीड्स
नारियल की छिलके से कोकोपीट की शीट तैयार होती है। मिट्टी की जगह कोकोपीट में सीड्स को इसलिए डालते हैं, क्योंकि मिट्टी में बीज डालने से बीमारी लगने की आशंका रहती है। कोकोपीट में गैप होने के कारण बीजों को पर्याप्त हवा मिलती है, जिससे बीज का अच्छा अंकुरण होता है। इस पद्धति में 90% से ज्यादा सीड्स का अंकुरण होता है। बीज अंकुरित होने के बाद पॉली हाउस में बिछाते हैं
कोकोपीट खाद को ट्रे में भर कर उसमें सीड डालते हैं। फिर इसे जर्मीनेशन रूम में बीज की टाइमिंग के अनुसार रख देते हैं। अंकुरित होने के बाद पॉली हाउस में लाकर बिछाते हैं। फिर रोजाना इसे देखना पड़ता है कि इरिगेशन कितना लग रहा है, कौन से खाद की जरूरत है, बीमारी तो नहीं है या कीड़ों का अटैक तो नहीं है। इसके लिए 25 से 30 लोग पॉली हाउस में काम करते हैं। ये भी पढ़ें ... एडवोकेट कर रहा जैविक हल्दी की खेती: इटारसी में 5 एकड़ में 500 क्विंटल पैदावार; घर में लगाई पिसाई यूनिट, पैकिंग-मार्केटिंग भी कर रहे इस बार दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में नर्मदापुरम के ऐसे शख्स से आपको मिलवाते हैं, जो पेशे से एडवोकेट के साथ किसान भी है। घाटली गांव के रहने वाले शरद वर्मा एलएलबी डिग्रीधारी हैं। इस बार उन्होंने 5 एकड़ में रिकॉर्ड तोड़ 500 क्विंटल हल्दी की पैदावार की है। खास है कि इसमें किसी भी रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते। यानी पूरी तरह जैविक हल्दी रहती है। पढ़ें पूरी खबर...