एसडीएम और कलेक्टर के निर्देशोंं का भी नहीं हुआ असर, कोलार तहसील में साढ़े सात माह में हुआ 30 दिन के नियम का पालन, वह भी अधूरा

Apr 26, 2024 - 12:26
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एसडीएम और कलेक्टर के निर्देशोंं का भी नहीं हुआ असर, कोलार तहसील में साढ़े सात माह में हुआ 30 दिन के नियम का पालन, वह भी अधूरा

अनमोल संदेश, कोलार

संवैधानिक नियमों की धज्जियां उड़ाना राजस्व विभाग के अधिकारियों के लिए कोई नई बात नहीं है। आए दिन ऐसे किस्से अखबारों की सुर्खियां बनते रहते हैं। ऐसा ही एक मामला राजधानी भोपाल की कोलार तहसील में चल रहा है, जहां अधिकारियों द्वारा नियमों के साथ-साथ अपने वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के निर्देश मानना भी मुनासिब नहीं समझा। दरअसल मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक की मंशा और कलेक्टर के आदेशों को हवा में उड़ाना इनकी आदत में शुमार है, लेकिन एक रुके हुए नामांतरण मामले के मीडिया में आने पर खत्मशुदा की मोहर लगाने में इतनी जल्दबाजी की गई कि काम हो भी गया और किसी काम का भी नहीं। 

सूत्र बताते हैं कि कोलार तहसील के अधिकारियों ने नामांतरण केे इस प्रकरण को निपटाने की प्रक्रिया तो कर दी, लेकिन इसको सरकारी पोर्टल आरसीएमएस पर नहीं चढ़ाया गया और न ही इसका खसरा अपडेट किया गया, जिससे नामांतरण प्रक्रिया किसी काम आ सके। बताया जाता है कि 14 सितंबर 23 को प्रकरण क्र. 2606/अ6/2023-24 नामांतरण के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लाई गई सायबर तहसील में आरसीएमएस पोर्टल पर रजिस्टर हुआ था। 

अधिकारियों का उदासीनतापूर्ण रवैया बना परेशानी 

नियमानुसार 15 दिनों में प्रकरण कम्प्लीट कर पोर्टल और खसरे में अपडेट किया जाना था, लेकिन 6 महीने बाद प्रकरण को सायबर तहसील के नियमों के विरुद्ध 27 जनवरी 24 में दस्तावेज के अभाव में निरस्त कर दिया गया। हालांकि कलेक्टर के सख्त निर्देश हैं कि सायबर तहसील में ऐसा कोई भी प्रकरण दस्तावेज के अभाव में निरस्त नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 35(3) के अनुसार दस्तावेज 06 मार्च 2024 को जमा कर दिए गए थे। वहीं सरकार द्वारा किसानों और आम जनता की मदद के लिए चलाया जा रहा राजस्व अभियान भी अधिकारियों के उदासीनतापूर्ण रवैये से गोलमोल ही रहा, क्योंकि 10 मार्च 2024 तक चले इस राजस्व महाअभियान में भी नायब तहसीलदार द्वारा इसका निराकरण नहीं किया गया। इसके बाद एक आवेदन एसडीएम कोलार को भी दिया गया। इस मामले की मौखिक शिकायत के लिए कलेक्टर कौशलेन्द्र विक्रम सिंह के ओएसडी पांडे से भी मुलाकात की और उनके द्वारा भी इन्हें इस प्रकरण को जल्द से जल्द निपटाने के लिए आदेशित किया गया, लेकिन नायब तहसीलदार ने इस आदेश को भी हवा में उड़ा दिया।

भू-राजस्व संहिता की अनदेखी 

एडवोकेट धीरज डागा ने बताया कि यह मामला मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 110 की उपधारा 4 व 6 का उल्लंघन क्रमश: देखने को मिलता है, जिसमें अविवादित मामलों में अधिकतम 1 माह के भीतर निपटारा किए जाना अनिवार्य है एवं उपधारा 6 के अंतर्गत किसी भी मामले को धारा 35 के अधीन निरस्त नहीं किया जा सकता है।

गेंद अब भी पटवारी के पाले में 

मजेदार बात यह है कि इस प्रकरण में अब गेंंद पटवारी के पाले में है। कोलार तहसील सूत्रों की मानें तो नायब तहसीलदार नेे अपने स्तर से प्रकरण का निराकरण कर दिया, किंतु पटवारी साहब ने इसे अब तक भी संबंधित सरकारी रिकार्ड यानि खसरा में नामांतरण नहीं किया है, जिससे प्रकरण का पूर्ण रूप से निराकरण नहीं माना जा सकता।

दूरदराज के इलाकों में क्या होगा...

इधर, सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा राजधानी के इस मामले को एक उदाहरण करार दिया है। उन्होंने कहा कि राजधानी में यह हालात हैं तो दूरदराज के इलाकों में क्या स्थिति होगी। जन अधिकार के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं के अनुसार अब वे प्रदेश भर की तहसीलों के मामले जुटा रहे हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस तरह के सभी मामलों को एकजाई करके मुख्यमंत्री को सौंपा जाएगा, ताकि प्रदेश का अन्नादाता भ्रष्ट राजस्व अधिकारियों की प्रताडऩा और दमनकारी कार्यप्रणाली से बच सकें।

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