65 करोड़ लोगों की पहली भाषा है हिंदी, जानें कैसे देश के विकास में दे रही है बड़ा योगदान

भाषा का राष्ट्र निर्माण में क्या योगदान होता है इस बात का अंदाजा महात्मा गांधी की कही इस बात से लगाए कि ‘राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है’। हिंदी दिवस (14 सितंबर) के अवसर पर हिंदी की व्यापकता और संचार की शक्ति के बारे में डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने विचार साझा किए। आइए जानें हिंदी के राष्ट्र निर्माण में योगदान और कैसे हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय। आज भारत विश्व की सबसे तीव्र गति से उभरने वाली आर्थिकी है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में देश की हैसियत लगातार बढ़ रही है। जब किसी राष्ट्र को विश्व बिरादरी महत्व और स्वीकृति देती है तथा उसके प्रति अपनी निर्भरता में वृद्धि पाती है तो उस राष्ट्र की तमाम चीजें स्वतः महत्वपूर्ण हो जाती हैं। भारत की विकासमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति हिंदी के लिए वरदान-सदृश है। आज विश्वस्तर पर उसकी स्वीकार्यता और व्याप्ति अनुभव की जा सकती है। पहले जिन देशों में हिंदी लगभग न के बराबर थी अब वहां भी उसकी अनुगूंज सुनी जा सकती है।
प्रतियोगी परीक्षाओं में बढ़ा प्रभुत्व आज नई पीढ़ी के लिए हिंदी भारत बोध और राष्ट्रीय अस्मिता का साधन है। हिंदी अब प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अपना प्रभुत्व दिखला रही है। नीट से लेकर संघ लोक सेवा आयोग तक हिंदी भाषा और माध्यम लेकर छात्र परीक्षाएं दे रहे हैं। इन परीक्षाओं में हिंदी और भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या अंग्रेजी से अभी भी कम है लेकिन पास होने वाले छात्रों का औसत अधिक है।
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