चीन को उसी की भाषा में जवाब देगा भारत
अरुणाचल प्रदेश के सात स्थानों के नाम बदलने को चुनौती दी है और चीन द्वारा जिन 30 स्थानों के नाम बदले गए, उनके विरोध का प्रयास कर रही है। अब उन्होंने तिब्बत के 30 स्थानों की एक सूची को भी अंतिम रूप दे दिया है, तथा ऐतिहासिक अभिलेखों से भारतीय भाषाओं में उनके प्राचीन नामों को पुन: प्राप्त किया है।
भारत ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने के चीनी कदम का जवाब देने के लिए जैसे को तैसा अभियान चलाया है, यानी भारत भी तिब्बत के 30 स्थानों के नाम बदलेगा। चीन द्वारा भारतीय क्षेत्रों के नाम बदलने को लेकर नई दिल्ली को संदेह है कि बीजिंग ने पूर्वोत्तर भारत के सबसे बड़े राज्य अरुणाचल प्रदेश पर अपनी मजबूत दावेदारी दिखाने के लिए ऐसा किया है। भारतीय सेना का सूचना युद्ध प्रभाग इस अभियान का नेतृत्व कर रहा है, जिसे कोलकाता स्थित ब्रिटिशकालीन एशियाटिक सोसाइटी जैसे प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों का समर्थन प्राप्त है।
सेना ने अपने लोगों के साथ प्रसारित विस्तृत ट्वीट में अरुणाचल प्रदेश के सात स्थानों के नाम बदलने को चुनौती दी है और चीन द्वारा जिन 30 स्थानों के नाम बदले गए, उनके विरोध का प्रयास कर रही है। अब उन्होंने तिब्बत के 30 स्थानों की एक सूची को भी अंतिम रूप दे दिया है, तथा ऐतिहासिक अभिलेखों से भारतीय भाषाओं में उनके प्राचीन नामों को पुन: प्राप्त किया है। इन पंक्तियों के लेखक के पास यह सूची उपलब्ध है, जो मीडिया के जरिये सार्वजनिक की जाएगी। यह भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य और विवादित सीमा के अन्य हिस्सों पर चीनी दावों के खिलाफ एक मजबूत जवाबी आख्यान प्रस्तुत करने के वैश्विक अभियान का हिस्सा है। अब चूंकि केंद्र में नई सरकार का गठन हो गया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। इसलिए चीन के स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत के स्थानों का नाम बदलने का इस्तेमाल अरुणाचल प्रदेश पर चीनी दावे को खत्म करने के लिए बदले के तौर पर किया जाएगा। सैन्य अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि नए नाम व्यापक ऐतिहासिक शोध के आधार पर रखे जाएंगे। पूर्व खुफिया ब्यूरो के अधिकारी बेनु घोष, जिन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वर्षों काम किया है और जिन्हें पर्वतारोहण में भी दिलचस्पी है, कहते हैं, जब भी ऐसा होगा, यह भारत द्वारा तिब्बत के प्रश्न को फिर से उठाने की तरह होगा।
जब से बीजिंग ने तिब्बत पर जबरन कब्जा किया है, तब से भारत ने इसे चीनी हिस्सा माना है, लेकिन अब मोदी सरकार चीनी मानचित्रण और नामकरण संबंधी आक्रामकता को कम करने के लिए अपना रुख बदलने को तैयार है। भारतीय सेना ने हाल के हफ्तों में इन विवादित सीमावर्ती क्षेत्रों में मीडिया के कई दौरे आयोजित करवाए हैं तथा मीडिया को उन स्थानीय लोगों से बात करने का मौका दिया है, जो चीनी दावों का कड़ा विरोध करते हुए कहते हैं कि वे हमेशा से भारत का हिस्सा थे। नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर इस अभियान से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि भारत का अंतिम लक्ष्य क्षेत्रीय और वैश्विक मीडिया के माध्यम से विवादित सीमा पर भारत के जवाबी आख्यान को आगे बढ़ाना है, जो ठोस ऐतिहासिक शोध और स्थानीय निवासियों के जनमत पर आधारित है। गौरतलब है कि इसी वर्ष कुछ समय पूर्व अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताने के लिए चीन ने इस राज्य में एलएसी के पास के 30 स्थानों का नाम बदल दिया। हांगकांग स्थित एक दैनिक के अनुसार, प्रशासनिक प्रभागों की स्थापना और नामकरण के लिए जिम्मेदार चीनी असैन्य मामलों के मंत्रालय ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में मानकीकृत भौगोलिक नामों की चौथी सूची जारी की है, जिसे बीजिंग जंगनान कहता है।
यह चौथी बार है, जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का एकतरफा नामकरण किया है। इससे पहले उसने ऐसा वर्ष 2017, 2021 और 2023 में किया था। चीन द्वारा नाम बदले गए स्थानों की सूची में 11 आवासीय क्षेत्र, 12 पर्वतीय, चार नदियां, एक झील, एक पहाड़ी दर्रा और एक भूखंड है। इन नामों में चीनी, तिब्बती और पिनयिन अक्षर हैं, जो मंदारिन चीनी का रोमन वर्णमाला संस्करण है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट ने मंत्रालय के बयान को उद्धृत किया है, जो कहता है कि भौगोलिक नामों के प्रबंधन पर राज्य परिषद (चीनी मंत्रिमंडल) के प्रासंगिक प्रावधानों के अनुसार, हमने संबंधित विभागों के साथ मिलकर चीन के जांगनान में कुछ भौगोलिक नामों को मानकीकृत किया है। बीजिंग ने वर्ष 2017 में अरुणाचल प्रदेश के छह स्थानों के कथित मानकीकृत नामों की पहली सूची जारी की थी, फिर वर्ष 2021 में 15 स्थानों की दूसरी सूची जारी की और उसके बाद वर्ष 2023 में 11 स्थानों के नामों की एक और सूची जारी की। भारत ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने के चीनी कदम को बार-बार खारिज करते हुए कहा है कि अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग है और मनगढ़ंत नाम रखने से यह वास्तविकता नहीं बदल जाती। वर्ष 2023 में तत्कालीन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था, हमने ऐसी रिपोर्टें देखी हैं। यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने ऐसा प्रयास किया हो। हम इसे सिरे से खारिज करते हैं।
उन्होंने आगे कहा, अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और रहेगा। मनगढ़ंत नाम रखने की कोशिशें इस सच्चाई को नहीं बदल पाएंगी। अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावों को पुष्ट करने के लिए चीनी बयानों की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर भारत के समक्ष कूटनीतिक विरोध दर्ज कराने से हुई, जहां प्रधानमंत्री मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में 13,000 फुट की ऊंचाई पर निर्मित सेला सुरंग को राष्ट्र को समर्पित किया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 23 मार्च को अरुणाचल प्रदेश पर चीन के बार-बार के दावे को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि यह सीमावर्ती राज्य भारत का स्वाभाविक हिस्सा है। उन्होंने सिंगापुर राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय दक्षिण एशियाई अध्ययन संस्थान में व्याख्यान देने के बाद अरुणाचल मुद्दे पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, यह कोई नया मुद्दा नहीं है। चीन के ये दावे शुरू से ही हास्यास्पद रहे हैं और आज भी हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इस मामले में हम हमेशा से बहुत स्पष्ट और तार्किक रहे हैं। यह सीमा पर चल रही चर्चाओं का हिस्सा बनेगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देने का मन बना लिया है और जैसे को तैसा की रणनीति अपनाते हुए नाम बदलने के अभियान में शामिल हो गया है।
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