SC-ST संगठनों का कल भारत बंद का ऐलान, एमपी मे बसपा करेगी समर्थन

अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षण में सब कैटेगराइजेशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विरोध दर्ज कराने के लिए 21 अगस्त को भारत बंद का ऐलान किया गया है। एमपी में भी दलित, आदिवासी संगठन और कुछ राजनीतिक दल इस बंद का समर्थन कर रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी पूरे एमपी में इस बंद का समर्थन कर रही है। वहीं, मनावर से कांग्रेस विधायक डॉ. हीरालाल अलावा जयस (जय आदिवासी युवा शक्ति) के बैनर तले इस बंद का समर्थन करेंगे।
बसपा प्रदेश अध्यक्ष रमांकांत पिप्पल ने बताया कि समाज के वंचित, शोषित और पीड़ित वर्ग जो आज भी समाज में भेदभाव, छुआछूत और गरीबी, बदहाली की जिंदगी जी रहा है। बाबा साहब द्वारा दिए गए संविधान की बदौलत लोगों के जीवन में सुधार आ रहा है। लेकिन, न्यायालय का निर्णय जनभावनाओं और उन दलित, आदिवासियों के खिलाफ है जो आज भी समाज की मुख्यधारा से दूर हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग द्वारा बुलाए गए इस बंद का बहुजन समाज पार्टी समर्थन करेगी।
जयस के प्रदेश अध्यक्ष इंद्रपाल मरकाम ने 21 अगस्त के बंद को लेकर जारी पत्र में लिखा-विगत दिनों उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा गया है SC,ST के आरक्षण में उपवर्गीकरण (क्रीमीलेयर) लागू कर सकते हैं। चूंकि SC,ST वर्ग का आरक्षण का आधार उनके साथ हुए जातिगत भेदभाव, अत्याचार और शोषण रहा है। इन सबको खत्म कर समानता स्थापित कर समतामूलक समाज और राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से आरक्षण सहित अन्य विशेष अधिकार SC-ST को दिया गया था।
लेकिन, यदि उच्चतम न्यायालय के टिप्पणी के बाद लागू होता है तो समानता के उद्देश्य और परिकल्पना को साकार नहीं किया जा सकता साथ ही आजादी के 78 वर्ष बाद भी मिले इस आरक्षण के बाद भी SC-ST का प्रतिनिधित्व निर्णायक क्षेत्रों में बहुत कम या नहीं हैं, ऐसे में SC-ST समुदाय द्वारा उच्चतम न्यायालय के इस टिप्पणी के विरोध में, 21 अगस्त को विरोध प्रदर्शन का जयस समर्थन करता है, जयस के साथियों आप राष्ट्र के जिम्मेदार नागरिक हैं हर आंदोलन संवैधानिक दायरे में रहकर करना हमारी पहचान है। इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखें कि किसी भी तरह से अराजकता, हिंसा, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक़सान ना पहुंचाते हुए ही आंदोलन को समर्थन देवें।
राज्य सरकारें अब अनुसूचित जाति, यानी SC के रिजर्वेशन में कोटे में कोटा दे सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (1 अगस्त) को इस बारे में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने 20 साल पुराना अपना ही फैसला पलटा है। तब कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जातियां खुद में एक समूह हैं, इसमें शामिल जातियों के आधार पर और बंटवारा नहीं किया जा सकता।
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