सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र पर मंडरा रहे संकट के बादल

नई दिल्ली
पहाड़ों को दुनिया के तीसरे धु्रव कहे जाने वाले हिमालय पर खतरा मंडरा रहा है। यहां भारी संख्या में ग्लेशियरों से ढेर सारी बर्फ पर ग्लोबल वॉर्मिंग से बहुत ज्यादा प्रभाव में बर्फ पिघलकर ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। इसका असर सामाजिक तौर पर भी पड़ता है। ग्लेशियरों के सिकुडऩे से सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यानि पहाड़ों पर जहां भी यहां से बहने वाला पानी जमा होता है, वहां पर ग्लेशियल लेक्स बन जाती हैं। पानी जुडऩे से हिमालय में पुरानी ग्लेशियल लेक्स का आकार भी बढ़ जाता है। ये ग्लेशियर और बर्फ भारत की नदियों का स्रोत हैं। लेकिन ये बर्फीली झीलें खतरनाक साबित हो सकती हैं। इन ग्लेशियल लेक्स से ग्लेशियल लेक्स आउटबस्र्ट फ्लड्स का खतरा रहता है। जैसे केदारनाथ, चमोली और सिक्किम में हादसे हुए। इससे निचले इलाकों में रहने वालों पर फ्लैश फ्लड और भूस्खलन का खतरा रहता है। ग्लेशियल लेक्स तब फूटती है, जब इनमें कोई भारी चीज गिर जाए या फिर पानी की मात्रा बढऩे पर इनकी दीवार टूट जाए।
झील का आकार 178 फीसदी बढ़ा
इन 676 झीलों में से 307 मोरेन डैम्ड, 265 इरोजन और 8 आइस डैम्ड ग्लेशियल लेक्स हैं। सिंधु नदी के ऊपर बने घेपांग घाट ग्लेशियल लेक की ऊंचाई 4068 मीटर है। यह हिमाचल प्रदेश में है। इसके आकार में 178 फीसदी का इजाफा हुआ है। यानी यह पहले 36.40 हेक्टेयर में थी, जो अब बढ़कर 101.30 हेक्टेयर हो चुकी है। यह हर साल 1.96 हेक्टेयर के हिसाब से बढ़ी है। इसरो इन पर नजर रखता है। सैटेलाइट्स के जरिए नई बनने वाली झीलों पर और साथ ही पुरानी झीलों के बढ़ते हुए आकार पर। ताकि खतरनाक ग्लेशियल लेक्स के फूटने से पहले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सके। या इससे बचाव का कोई रास्ता निकाला जा सके। भारत के पास हिमालय पर मौजूद बर्फीली झीलों का 3-4 दशक का डेटा है।
हिमालय पर कुल मिलाकर 2431 झीलें, लगातार बढ़ रहा आकार
1984 से 2023 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि हिमालय में 2431 झीलें ऐसी हैं, जो आकार में 10 हेक्टेयर से बड़ी हैं। जबकि 1984 से अब तक 676 झीलें ऐसी हैं, जिनके क्षेत्रफल में फैलाव हुआ है। इनमें से 130 भारत में मौजूद हैं। सिंधु नदी के ऊपर 65, गंगा के ऊपर सात और ब्रह्मपुत्र के ऊपर 58 ग्लेशियल लेक्स बनी हैं। इन 676 झीलों में से 601 के आकार में दो बार से ज्यादा फैलाव हुआ है। जबकि 10 झीलें डेढ़ से दोगुना बढ़ी हैं। वहीं 65 झीलें हैं, जो डेढ़ गुना बढ़ी हैं। अगर इन झीलों की ऊंचाई की बात करें तो 314 झीलें 4 से 5 हजार मीटर (13 से 16 हजार फीट) की ऊंचाई पर हैं। जबकि 296 ग्लेशियल लेक्स 5 हजार मीटर से ऊपर हैं। इन झीलों को चार अलग-अलग कैटेगरी में बांटा गया है। मोरेन डैम्ड यानी पानी के चारों तरफ मलबे की दीवार। आइस डैम्ड यानी पानी के चारों तरफ बर्फ की दीवार, इरोजन यानी मिट्टी कटने की वजह से बने गड्ढे में जमा ग्लेशियर का पानी और अन्य ग्लेशियल झीलें।
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