हर सुबह कुटिया में दाना-पानी रखते थे संतजी : सिद्धभाऊ

अनमोल संदेश, संतनगर
गर्मियों में पक्षियों को छांव दे, सकोरों में दाना-पाना रखें। आपकी छत पर परिंदे हर सुबह पंगत करने आएंगे। उनकी दाना-पानी की तलाश आपकी छत पर पूरी होनी चाहिए। चिडिय़ों की चहचाहट आपके मन को आनंद से भर देगी। इस तरह की सीख संत हिरदारामजी के उत्तराधिकारी सिद्धभाऊ ने प्ररेणादायक सत्र में संत हिरदाराम इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट की छात्राओं को दी। संतजी की प्रेरणा से चल रहे शिक्षण संस्थाओं में भाऊ दाना-पानी अभियान चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि जीव-जंतु एवं पौधे हमारे लिए वरदान हैं। इनके प्रति संवेदनशीलता होना मनुष्य के कत्र्तव्य है।
छात्राओं से भी की अपेक्षा
संस्था द्वारा भेंट स्वरूप जो घोंसला, सकोरे एवं आहार उन्हें मिल रहा है, उसे वो पक्षियों को प्रतिदिन नियमित रूप से दें। इसके परिणाम स्वरूप उनके जीवन में न सिर्फ सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा, बल्कि जीवन में भी प्रसन्नता, रोग-मुक्ति एवं सफलता रहेगी।
सीख को जीवन में उतारें
सत्र की शुरूआत परंपरागत तरीके से हुई। संस्थान के डायरेक्टर डॉ. आशीष ठाकुर और मैनेजिंग डायरेक्टर हीरो ज्ञानचंदानी ने प्रारंभिक वक्तव्य दिया। सिद्धभाऊ की सीख को जीवन में उतारने का आग्रह किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. कोमल तनेजा ने किया।
दाना पानी से हो शुरू हो दिन
भाऊ ने कहा कि चिडिय़ा को दाना-पानी देने से मन को आत्म संतुष्टि होती है, जो अनमोल है। सुबह उठकर सबसे पहले स्वयं का पेट भरने से पहले रात भर के भूखे-प्यासे पशु-पक्षियों को सुबह जल्दी उठकर बिना कुछ खाए-पिये दाना-पानी दें। इन प्राणियों की सेवा करने से बलाएं टल जाती हैं।
संतजी के विचार अनुकरणीय
संत हिरदारामजी के विचार हमेशा अनुकरणीय हैं। उनके दिन की शुरूआत कुटिया में पक्षियों को दाना-पानी रखने के साथ होती थी। वे कहते थे, सारा जगत पशु पक्षियों का भी है। उन्हें दाना चुगाने से हम सीधे परमात्मा से जुड़ सकते हैं। इसलिए पशु-पक्षियों की सेवा परमात्मा की सेवा है। पशु-पक्षी हमसे कोई अपेक्षा नहीं रखते, परंतु हमारी थोड़ी सी देखभाल के बदले में वे हमें बहुत सारा प्यार देने को तत्पर रहते हैं। इनसे अधिक वफादार कोई भी नहीं होता।
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