धनतेरस पर कुबेर देव के दर्शन के लिए उमड़ी भीड़, 1400 साल पुरानी है प्रतिमा

उज्जैन : उज्जैन में मंगलवार को धनत्रयोदशी के अवसर पर सुख, समृद्धि और धन की कामना के साथ श्रद्धालुओं ने धन के देवता कुबेर देव के दर्शन कर रहे हैं। कुबेर की नाभि पर इत्र लगाकर कामना की गई। सुबह से ही श्रद्धालु यहां पहुंचने लगे थे। मान्यता है कि, भगवान कृष्ण की गुरु दक्षिणा देने के लिए धन की पोटली लेकर कुबेर आए थे, फिर यहीं रह गए। तभी से यहां पर प्रतिमा विराजित है।
दीपावली पर्व की शुरूआत धनतेरस के साथ हो जाती है। मंगलवार को धनतेरस होने से सुबह से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने श्री सांदीपनि आश्रम में स्थित कुबेर देव की प्रतिमा के दर्शन किए। आश्रम परिसर में स्थित 84 महादेव मंदिरों में 40वें क्रम में शामिल कुंडेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में कुबेर की प्राचीन प्रतिमा के दर्शन होते हैं।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि, धनत्रयोदशी के अवसर पर कुबेर देवता का साल में एक बार आभूषण से श्रृंगार होता है। धनत्रयोदशी पर कुबेर की प्रतिमा की नाभि में इत्र लगाने से कुबेर देव को राहत मिलती है। इससे प्रसन्न होकर वे धन, धान्य, सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इसलिए श्रद्धालु यहां इत्र लेकर पहुंचते हैं और नाभि में इत्र लगाकर अपनी मनोकामना मांगते हैं। यहां पर धनतेरस से दीपावली पर्व तक भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय के उत्खनन अधिकारी और पुरातत्ववेत्ता डॉ. रमण सोलंकी ने बातया कि कुंडेश्वर मंदिर में विराजित कुबेर की आकर्षक बैठी हुई प्रतिमा परमार कालिन है। यह लगभग 1400 साल पुरानी है। प्रतिमा की बनावट में कुबेर के एक हाथ में सोम पात्र है तो दूसरा हाथ वर मुद्रा में है। दो हाथों में कंधे पर धन की पोटली रखी है। प्रतिमा पर तीखी नाक, उभरा पेट, शरीर पर अलंकार से कुबेर का स्वरूप आकर्षक है। इस प्रतिमा के अलावा गर्भगृह में बालाजी, वामन देव, भगवान नारायण की प्राचीन प्रतिमाएं भी स्थापित है।
ऐसा कहा जाता है कि, जब भगवान कृष्ण ने महर्षि सांदिपनि के आश्रम से शिक्षा ग्रहण कर ली थी और वापस घर जाने का समय आया तो गुर दक्षिणा देने के लिए भगवान नारायण के सेवक कुबेर धन लेकर आश्रम आए थे। तब गुरु ने कुबेर का धन लेना अस्वीकार कर दिया था। वहीं गुरुमाता ने कृष्ण से कहा कि, यदि तुम्हे कुछ देना है तो मुझे मेरे बेटे को राक्षस से जीवित लाकर दो। तब कृष्ण ने गुरुमाता के एक बेटे को जीवित लाकर दिया। अध्ययन पूरा होने के बाद यहीं से भगवान कृष्ण कुबेर देव से खजाना लेकर गए और द्वारका नगरी बसाकर द्वारकाधीश हुए।
उज्जैन में दिवाली पर्व की शुरुआत सबसे पहले भगवान महाकाल के आंगन से हुई। 5 दिवसीय त्योहार के पहले दिन मंगलवार को कलेक्टर नीरज कुमार सिंह और एसपी प्रदीप शर्मा ने महाकालेश्वर मंदिर में परंपरानुसार धन तेरस की पूजा की। 22 पुजारी-पुरोहितों ने बाबा महाकाल के साथ कुबेर और चांदी के सिक्कों का पूजन-अभिषेक कराया। महाकाल को चांदी का सिक्का अर्पित किया गया।
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