कर्मचारी एक स्वर में कह रहे, पदोन्नति शुरू करें सरकार

कर्मचारी संगठन पदोन्नति शुरू करने या इसका कोई विकल्प निकालने की मांग की
अनमोल संदेश, भोपाल
पदोन्नति के नए फार्मूले पर एकमत नहीं होने के बावजूद दोनों वर्ग (आरक्षित और अनारक्षित) के कर्मचारी पदोन्नति पर 8 साल 10 महीने से लगी रोक हटाने के पक्ष में हैं। वे कहते हैं कि सर्वमान्य रास्ता निकालकर सरकार को पदोन्नति शुरू करना चाहिए। पदोन्नति पर रोक से दोनों वर्ग के कर्मचारियों को नुकसान हो रहा है। इन सालों में डेढ़ लाख से अधिक कर्मचारी बगैर पदोन्नति के ही रिटायर हो चुके हैं।
इस साल भी करीब 3500 कर्मचारी रिटायर होंगे। दोनों वर्ग के कर्मचारियों का एक स्वर में कहना है कि अखिल भारतीय सेवा और राज्य सेवा के अधिकारियों की तरह उन्हें भी निश्चित समय पर आगे बढऩे का मौका मिलना ही चाहिए। ऐसा नहीं करके सरकार हम कर्मचारियों के साथ अन्याय कर रही है। इस मामले में देखा जा रहा है कि सरकार अपनी ही बनाई व्यवस्था का भी पालन नहीं करा सकी है। साल 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार ने तत्कालीन मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में कैबिनेट उप समिति का गठन किया था। जिसने उच्च पदनाम के साथ क्रमोन्नति देने की व्यवस्था दी थी। इस व्यवस्था के तहत सामान्य प्रशासन विभाग ने 9 मार्च 2020 को उच्च पदनाम के साथ क्रमोन्नति देने का आदेश जारी किया था, जिसका क्रियान्वयन कुछ विभागों ने तो किया, पर मंत्रालय स्तर पर क्रियान्वयन नहीं हुआ। इस कारण अनुसूचित जाति-जनजाति के साथ सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की भी नाराजगी बढ़ गई है। प्रदेश के सभी कर्मचारी संगठन पदोन्नति शुरू करने या इसका कोई विकल्प निकालने की लगातार मांग कर रहे हैं।
आरक्षित वर्ग (अनुसूचित जाति-जनजाति) के कर्मचारियों को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 के तहत पदोन्नति में आरक्षण दिया जा रहा था। इसके विरुद्ध अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिकाएं लगाईं। हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को इस नियम से पदोन्नति में आरक्षण का प्रावधान खत्म कर दिया। हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई और सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण में यथास्थिति रखने के निर्देश दिए। तब से मध्य प्रदेश में पदोन्नति पर अघोषित रोक है। दरअसल, इस मामले में सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया, पर सभी विभाग सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देकर पदोन्नति देने से इंकार कर देते हैं। साल 2018 में तत्कालीन शिवराज सरकार को कर्मचारियों की नाराजगी का अहसास हुआ और विधानसभा चुनाव को देखते हुए पदोन्नति के विकल्प तलाशने का अभियान शुरू हुआ। कैबिनेट की उप समिति बनाई गई। जिसने आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों के साथ कई बैठक कीं पर किसी सर्वमान्य नतीजे पर नहीं पहुंचे। फिर कर्मचारियों को खुश करने के लिए उच्च पद का प्रभार देने की व्यवस्था बनाई गई, वह भी कुछ ही विभागों ने लागू की।
सेवानिवृत्त कर्मचारी के विदाई समारोह में पुलिस की दादागिरी
सीधी जिले के चुरहट में सेवानिवृत्त कर्मचारी गणपति पटेल के विदाई समारोह के दौरान थाना प्रभारी द्वारा कथित रूप से प्रताडऩा का मामला गरमा गया है।
इस घटना को लेकर शासकीय अधिकारी कर्मचारी निगम मंडल एवं पेंशनर्स संयुक्त मोर्चा के पदाधिकारियों ने कड़ी आपत्ति जताई है। मोर्चा के प्रदेश संयोजक प्रमोद तिवारी, प्रदेश अध्यक्ष उदित भदोरिया और अरुण द्विवेदी सहित अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भोपाल में उच्च पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने थाना प्रभारी द्वारा सेवानिवृत्त कर्मचारी और उनके परिवार को धमकाने एवं झूठे आरोप लगाने की शिकायत की। उल्लेखनीय है कि पटेल लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से 31 जनवरी को रिटायर हुए हैं। उन्हें उनका परिवार और सहयोग बैंडबाजे के साथ घर ले जा रहे थे, तभी यह घटना घटी। पदाधिकारियों का कहना है कि यह मामला अत्यंत गंभीर है। किसी सेवानिवृत्त कर्मचारी के विदाई समारोह जैसे खुशी के अवसर पर उसे और उसके परिवार को प्रताडि़त करना न केवल मानवता के विरुद्ध है, बल्कि संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का भी हनन है।
अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा का तीसरे चरण का प्रदर्शन 7 को: मध्य प्रदेश अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त मोर्चा के आंदोलन के तीसरे चरण में 7 फरवरी को कर्मचारी भोपाल में सतपुड़ा भवन और जिलों में कलेक्ट्रेट के सामने प्रदर्शन करेंगे। इस मौके पर 51 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन सौंपा जाएगा। वहीं आंदोलन के चौथे चरण में 16 फरवरी को प्रदेश के समस्त जिलों से प्रतिनिधि भोपाल के आंबेडकर पार्क में एकत्रित होंगे और सभा करेंगे। सभा को मुख्य रूप से मध्य प्रदेश अधिकारी कर्मचारी संयुक्त मोर्चा में शामिल सभी घटक संगठनों के प्रांताध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारी संबोधित करेंगे।
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