जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: श्रीनगर में क्या है माहौल

इस साल अप्रैल और मई में हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर में क़रीब 58 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी, जो एक रिकॉर्ड था
इस बार एक बड़ा बदलाव ये भी था कि किसी भी राजनीतिक दल ने इन चुनावों का बहिष्कार नहीं किया था.अब जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैंभारतीय जनता पार्टी का चुनावी घोषणापत्र जारी करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, "ये 10 साल (2014-2024) जम्मू-कश्मीर के लिए शांति और विकास के रहे हैं. ये 10 साल मैक्सिमम टेररिज़म की जगह मैक्सिमम टूरिजम पर शिफ़्ट हुए हैं. 10 साल सुख और समृद्धि का रास्ता प्रशस्त करने वाले रहे हैं."
सरकार का कहना है कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद से पर्यटन के क्षेत्र में पिछले तीन सालों में औसतन 15 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई हैश्रीनगर में रहने वाले डॉ शेख़ शौक़त हुसैन एक जाने-माने राजनीतिक विशेषज्ञ हैं.वो कहते हैं, "कुछ बातों से पता चलता है कि हालात सामान्य हुए या नहीं. एक तो हमेशा ये रहा कि हालात सामान्य हो जाएंगे तो कश्मीरी पंडित वापस आएंगे. कितने आ गए ये तो आपको भी मालूम है. कोई नहीं आया.”
डॉ शेख़ कहते हैं, ''ये सही है कि भीड़ वाली हिंसा कम हो गई है लेकिन उधमपुर, कठुआ और डोडा जैसे इलाक़े जो मिलिटेंसी से प्रभावित नहीं थे, वहाँ ऐसी दिक़्क़ते बढ़ी हैं. जो कह रहे हैं कि हालात बहुत अच्छे हो गए, उनको ख़ुद उस बात पर यक़ीन होता तो लोकसभाल चुनाव में वो ख़ुद यहाँ से लड़ते. उन्होंने नहीं लड़ा.''
घाटी में कैसा दिखता है माहौल?
हमने कश्मीर घाटी के कई इलाक़ों का दौरा किया.श्रीनगर के पर्यटकों से भरे इलाकों में सब कुछ सामान्य ही दिखता है सिवाय सुरक्षा बलों की असाधारण मौजूदगी के. होटल, हाउसबोट और रेस्तराँ चलाने वाले लोग पर्यटकों की आमद से ख़ुश लगते हैं लेकिन पुराने श्रीनगर के इलाक़े में लोगों से बात करने पर इससे बहुत अलग माहौल नज़र आता है.डाउनटाउन कहे जाने वाले इलाक़े में एक कश्मीरी बुज़ुर्ग ने कहा, "कोई सच बोलेगा तो शाम को उसे बंद कर दिया जाएगा. हमारी बात सुनने वाला भी कोई नहीं है."
स्थानीय निवासी साहिल अराफ़ात का कहना था, "कब्र का हाल मुर्दा ही जान सकता है. डरे हुए हैं लोग. डरते हैं बेचारे. अमन की बात हो रही है लेकिन अमन नहीं है."अनंतनाग में सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल बारी नाईक ने कहा, "मैं हमेशा कहता हूँ कि अमन होता है दिलों के प्यार से. यहाँ वैसा माहौल बनाया जाना चाहिए कि यहाँ के लोग अमन और सुक़ून को कायम करें. यहाँ इतनी फ़ोर्स नहीं होनी चाहिए, जब इतनी फ़ोर्स नहीं होगी तो हम कहेंगे कि अमन है."बिजबिहाड़ा में मोहम्मद अब्दुल्ला शाह कहते हैं, "अगर ये दिल जीत जाते तो लोग सामने आते. जब दिल ही नहीं जीता तो अंदर में लावा फटता है."
बहुत से स्थानीय लोगों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 नहीं हटाया जाना चाहिए था.श्रीनगर में रहने वाले हाजी ग़ुलाम नबी ने कहा, "वो हमारा बुनियादी हक़ है. हमसे छीन लिया वो. ज़बरदस्ती छीन लिया.”बहुत से लोग ऐसे भी थे जो कैमरा पर बात करने के लिए तैयार नहीं हुए जिससे वहाँ मौजूद तनाव का एहसास होता है.