LoC के आखिरी परिवार ने कैसे झेली पाकिस्तानी बमबारी:बंकर ने बचाई जान; बोले- बॉर्डर पर घर, लेकिन पहली बार देखे ऐसे हालात
‘अगर LoC पर तनातनी न हो और फायरिंग-गोलाबारी न हो तो पुंछ में हमारी जिंदगी सऊदी अरब से भी अच्छी है। जब गोलाबारी होती है, तब यही लगता है कि हमारी जिंदगी में कुछ नहीं बचा। अमन है तो सब कुछ है, वरना कुछ नहीं है।’ पुंछ के करमाडा गांव में LoC के करीब आखिरी घर मोहम्मद शरीफ का है। सऊदी में कारोबार के लिए काफी समय तक रहने वाले शरीफ अब परिवार के साथ पुंछ में रहते हैं। वो और उनका परिवार खुश है कि सरहद पर अमन-चैन लौट आया है। वे कहते हैं- 'बंकर न होता तो बचना मुश्किल था। हमें तो लगा ही नहीं था कि अब दोस्त-यार से मिल पाएंगे।' मोहम्मद शरीफ के घर से LoC और PoK साफ नजर आता है। इसलिए तनाव के वक्त में खतरा भी ज्यादा रहता है। भारत-पाकिस्तान के बीच 5 दिन तक चले संघर्ष के बाद 11 मई की शाम सीजफायर हो गया। इसके बाद बॉर्डर के आसपास के इलाकों में सिक्योरिटी फोर्सेज सैनेटाइजेशन में जुटी हैं। यानी जवान घूम-घूम कर देख रहे हैं कि बमबारी के दौरान गिरे शेल, ड्रोन, मिसाइल या बम अब भी जिंदा तो नहीं हैं। लाइव बम को तलाश कर डिफ्यूज किया जा रहा है। सीजफायर के एक हफ्ते बाद हम भारत-पाकिस्तान के बीच वॉर फ्रंट बने पुंछ के LoC के आसपास वाले इलाकों में पहुंचे। यहां हमने सेना के सैनेटाइजेशन के अभियान को करीब से देखा। साथ ही जानने की कोशिश की कि जंग के दौर में LoC पर रहने वाले लोगों की जिंदगी किन हालात में गुजरी। पुंछ का करमाडा गांव…
LoC के इलाकों में पाकिस्तानी बम डिफ्यूज कर रहे जवान
हम पुंछ से चक्कन दा बाग ट्रेड सेंटर और करमाडा लाइन ऑफ कंट्रोल के रास्ते बॉर्डर के आखिरी गांव करमाडा की ओर बढ़ रहे थे। तभी जोरदार धमाके की आवाज आई। एक पल को समझ नहीं आया कि ब्लास्ट की आवाज कहां से आई। तभी पास में मौजूद एक आर्मी यूनिट ने बताया कि पाकिस्तानी बमबारी में जो आर्टिलरी शेल फटे नहीं थे, उन्हें डिफ्यूज किया जा रहा है। ये आवाज उसी बम को डिफ्यूज करने की है। बॉर्डर का आखिरी परिवार, बमबारी में भी नहीं छोड़ा घर
6-7 मई की दरमियानी रात भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी बमबारी शुरू हई। ये 5 दिनों तक चली। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान जम्मू के पुंछ जिले में ही देखा गया। पाकिस्तानी गोलीबारी में अकेले पुंछ में 16 लोगों की मौत हुई। ज्यादातर लोगों ने पुंछ छोड़कर जम्मू का रुख कर लिया था। हालांकि, उस दौर में भी करमाडा गांव में मोहम्मद शरीफ के परिवार ने घर नहीं छोड़ा। गांव में LoC के करीब आखिरी घर मोहम्मद शरीफ का है। इसके आगे सिर्फ सिक्योरिटी फोर्सेज ही जा सकती हैं। बमबारी का दौर याद कर शरीफ कहते हैं, ‘पहला बम गिरने के बाद से जब गोलाबारी तेज हो गई, तब मुझे एहसास होने लगा था कि हमारा बचना मुश्किल है।‘ मैं सोचने लगा था कि अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, यार से फिर कभी नहीं मिल पाऊंगा। पहली रात से ज्यादा तो दूसरी रात को गोलाबारी हुई। हमें लगा कि अब तो ये जंग बढ़ती ही जा रही है। ‘हालांकि, गोलाबारी के बाद से ही आर्मी वाले हमारा हालचाल पूछते रहे कि हम किस हाल में हैं। मकान में कोई नुकसान तो नहीं हुआ। पास में पुलिस चौकी भी है। वो भी हमारी खैरियत लेते रहते थे। जिस दिन गोलाबारी बंद हुई और सीजफायर हुआ, उस दिन हमने राहत की सांस ली। सीजफायर के बाद एक दिन थोड़ी-बहुत फायरिंग हुई, लेकिन उसके बाद से हालात बेहतर हैं।’ गांव में दो बंकर, बमबारी में 5-6 दिन इसी में रहे गांववाले
मोहम्मद शरीफ के घर के पास ही सरकार ने बंकर बनवा रखा है। करीब एक फीट चौड़ी दीवारों वाला बंकर कॉन्क्रीट और लोहे से बना हुआ है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि आर्टिलरी शेल या स्पिलंटर किसी भी स्थिति में अंदर बैठे लोगों को नुकसान न पहुंचा सके। बंकर में हवा और रोशनी का भी इंतजाम है। इसके लिए छत के पास पतली-पतली खिड़कियां बनाई गई हैं। उन्हें भी इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कोई भी स्पिलंटर अंदर बैठे लोगों को न लग सके। वैसे आम दिनों में ये बंकर वीरान पड़े रहते थे। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के हालात में गांव के लोगों के लिए यही ठिकाना बने। बमबारी से पहले बंकर साफ करके यहां बैठने और लेटने का इंतजाम किया गया। गांव के करीब 100 लोगों ने इन दो बंकरों में करीब 4-5 दिन का वक्त बिताया। इसी बंकर की वजह से आसपास के लोग भरोसे के साथ अपने घर पर टिके रहे। उन्हें घर नहीं छोड़ना पड़ा। शरीफ कहते हैं, ‘हम बॉर्डर के आखिरी घर और पाकिस्तान के सबसे करीब होते हुए भी यहां इसलिए टिके रहे क्योंकि हमारे पास बंकर था। बंकर की वजह से हम सेफ महसूस कर रहे थे। जब गोले गिर रहे थे तो हमारे बच्चे डरे हुए थे, रो रहे थे, लेकिन बंकर ने हमारा भरोसा बनाए रखा।’ मोहम्मद शरीफ की बेटी अस्मा शरीफ भी बमबारी के वक्त घर पर ही थीं। वे बताती हैं कि उन्हे किचन की खिड़की से भी स्प्लिंटर आने का डर सता रहा था। उन्हें सिर्फ बंकर ही एक सेफ जगह लग रही थी। इसलिए उन्होंने एक हफ्ते के लिए किचन भी बंकर में शिफ्ट कर लिया था, ताकि परिवार और गांव के लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया जा सके। हमारे लिए बंकर बनवा दे सरकार, बाकी कोई सुविधा भले न दें
पाकिस्तान को लेकर मोहम्मद शरीफ कहते हैं, ’ये हालात देखने के बाद हमने आर्मी के साथ हुई मीटिंग में कहा है कि सरकार बस हमारे लिए बंकर बनवा दे, बाकी कोई सुविधाएं भले ना दो। बंकर से हमारे बच्चे और पूरा गांव महफूज रहेगा। अभी सिर्फ हमारे आधे गांव में बंकर हैं। आसपास के गांवों में तो और भी कम बंकर हैं। ऐसे हालात देखने के बाद सरकार को सबसे पहले सीमा वाले इलाकों में बंकर बनाने की जरूरत है।’ वो आगे कहते हैं, ’अगर पाकिस्तान ऐसी शरारतें करता रहेगा तो अभी भीख मांग रहा है, आगे और भीख मांगकर मरेगा। इतनी बमबारी में पैसा खर्च होता है। दोनों तरफ की अवाम मारी जा रही है, ये पैसा लोगों पर खर्च होना चाहिए।’ ‘जो सीजफायर हुआ, अच्छा हुआ। जो कहते हैं हम कश्मीर लेंगे, वो कश्मीर लेकर क्या करेंगे। अभी हम अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं। अगर अमन होगा तो पाकिस्तान से भी टूरिस्ट आकर यहां के
‘अगर LoC पर तनातनी न हो और फायरिंग-गोलाबारी न हो तो पुंछ में हमारी जिंदगी सऊदी अरब से भी अच्छी है। जब गोलाबारी होती है, तब यही लगता है कि हमारी जिंदगी में कुछ नहीं बचा। अमन है तो सब कुछ है, वरना कुछ नहीं है।’ पुंछ के करमाडा गांव में LoC के करीब आखिरी घर मोहम्मद शरीफ का है। सऊदी में कारोबार के लिए काफी समय तक रहने वाले शरीफ अब परिवार के साथ पुंछ में रहते हैं। वो और उनका परिवार खुश है कि सरहद पर अमन-चैन लौट आया है। वे कहते हैं- 'बंकर न होता तो बचना मुश्किल था। हमें तो लगा ही नहीं था कि अब दोस्त-यार से मिल पाएंगे।' मोहम्मद शरीफ के घर से LoC और PoK साफ नजर आता है। इसलिए तनाव के वक्त में खतरा भी ज्यादा रहता है। भारत-पाकिस्तान के बीच 5 दिन तक चले संघर्ष के बाद 11 मई की शाम सीजफायर हो गया। इसके बाद बॉर्डर के आसपास के इलाकों में सिक्योरिटी फोर्सेज सैनेटाइजेशन में जुटी हैं। यानी जवान घूम-घूम कर देख रहे हैं कि बमबारी के दौरान गिरे शेल, ड्रोन, मिसाइल या बम अब भी जिंदा तो नहीं हैं। लाइव बम को तलाश कर डिफ्यूज किया जा रहा है। सीजफायर के एक हफ्ते बाद हम भारत-पाकिस्तान के बीच वॉर फ्रंट बने पुंछ के LoC के आसपास वाले इलाकों में पहुंचे। यहां हमने सेना के सैनेटाइजेशन के अभियान को करीब से देखा। साथ ही जानने की कोशिश की कि जंग के दौर में LoC पर रहने वाले लोगों की जिंदगी किन हालात में गुजरी। पुंछ का करमाडा गांव…
LoC के इलाकों में पाकिस्तानी बम डिफ्यूज कर रहे जवान
हम पुंछ से चक्कन दा बाग ट्रेड सेंटर और करमाडा लाइन ऑफ कंट्रोल के रास्ते बॉर्डर के आखिरी गांव करमाडा की ओर बढ़ रहे थे। तभी जोरदार धमाके की आवाज आई। एक पल को समझ नहीं आया कि ब्लास्ट की आवाज कहां से आई। तभी पास में मौजूद एक आर्मी यूनिट ने बताया कि पाकिस्तानी बमबारी में जो आर्टिलरी शेल फटे नहीं थे, उन्हें डिफ्यूज किया जा रहा है। ये आवाज उसी बम को डिफ्यूज करने की है। बॉर्डर का आखिरी परिवार, बमबारी में भी नहीं छोड़ा घर
6-7 मई की दरमियानी रात भारत के ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तानी बमबारी शुरू हई। ये 5 दिनों तक चली। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान जम्मू के पुंछ जिले में ही देखा गया। पाकिस्तानी गोलीबारी में अकेले पुंछ में 16 लोगों की मौत हुई। ज्यादातर लोगों ने पुंछ छोड़कर जम्मू का रुख कर लिया था। हालांकि, उस दौर में भी करमाडा गांव में मोहम्मद शरीफ के परिवार ने घर नहीं छोड़ा। गांव में LoC के करीब आखिरी घर मोहम्मद शरीफ का है। इसके आगे सिर्फ सिक्योरिटी फोर्सेज ही जा सकती हैं। बमबारी का दौर याद कर शरीफ कहते हैं, ‘पहला बम गिरने के बाद से जब गोलाबारी तेज हो गई, तब मुझे एहसास होने लगा था कि हमारा बचना मुश्किल है।‘ मैं सोचने लगा था कि अपने किसी रिश्तेदार, दोस्त, यार से फिर कभी नहीं मिल पाऊंगा। पहली रात से ज्यादा तो दूसरी रात को गोलाबारी हुई। हमें लगा कि अब तो ये जंग बढ़ती ही जा रही है। ‘हालांकि, गोलाबारी के बाद से ही आर्मी वाले हमारा हालचाल पूछते रहे कि हम किस हाल में हैं। मकान में कोई नुकसान तो नहीं हुआ। पास में पुलिस चौकी भी है। वो भी हमारी खैरियत लेते रहते थे। जिस दिन गोलाबारी बंद हुई और सीजफायर हुआ, उस दिन हमने राहत की सांस ली। सीजफायर के बाद एक दिन थोड़ी-बहुत फायरिंग हुई, लेकिन उसके बाद से हालात बेहतर हैं।’ गांव में दो बंकर, बमबारी में 5-6 दिन इसी में रहे गांववाले
मोहम्मद शरीफ के घर के पास ही सरकार ने बंकर बनवा रखा है। करीब एक फीट चौड़ी दीवारों वाला बंकर कॉन्क्रीट और लोहे से बना हुआ है। इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि आर्टिलरी शेल या स्पिलंटर किसी भी स्थिति में अंदर बैठे लोगों को नुकसान न पहुंचा सके। बंकर में हवा और रोशनी का भी इंतजाम है। इसके लिए छत के पास पतली-पतली खिड़कियां बनाई गई हैं। उन्हें भी इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कोई भी स्पिलंटर अंदर बैठे लोगों को न लग सके। वैसे आम दिनों में ये बंकर वीरान पड़े रहते थे। भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के हालात में गांव के लोगों के लिए यही ठिकाना बने। बमबारी से पहले बंकर साफ करके यहां बैठने और लेटने का इंतजाम किया गया। गांव के करीब 100 लोगों ने इन दो बंकरों में करीब 4-5 दिन का वक्त बिताया। इसी बंकर की वजह से आसपास के लोग भरोसे के साथ अपने घर पर टिके रहे। उन्हें घर नहीं छोड़ना पड़ा। शरीफ कहते हैं, ‘हम बॉर्डर के आखिरी घर और पाकिस्तान के सबसे करीब होते हुए भी यहां इसलिए टिके रहे क्योंकि हमारे पास बंकर था। बंकर की वजह से हम सेफ महसूस कर रहे थे। जब गोले गिर रहे थे तो हमारे बच्चे डरे हुए थे, रो रहे थे, लेकिन बंकर ने हमारा भरोसा बनाए रखा।’ मोहम्मद शरीफ की बेटी अस्मा शरीफ भी बमबारी के वक्त घर पर ही थीं। वे बताती हैं कि उन्हे किचन की खिड़की से भी स्प्लिंटर आने का डर सता रहा था। उन्हें सिर्फ बंकर ही एक सेफ जगह लग रही थी। इसलिए उन्होंने एक हफ्ते के लिए किचन भी बंकर में शिफ्ट कर लिया था, ताकि परिवार और गांव के लोगों के लिए खाने का इंतजाम किया जा सके। हमारे लिए बंकर बनवा दे सरकार, बाकी कोई सुविधा भले न दें
पाकिस्तान को लेकर मोहम्मद शरीफ कहते हैं, ’ये हालात देखने के बाद हमने आर्मी के साथ हुई मीटिंग में कहा है कि सरकार बस हमारे लिए बंकर बनवा दे, बाकी कोई सुविधाएं भले ना दो। बंकर से हमारे बच्चे और पूरा गांव महफूज रहेगा। अभी सिर्फ हमारे आधे गांव में बंकर हैं। आसपास के गांवों में तो और भी कम बंकर हैं। ऐसे हालात देखने के बाद सरकार को सबसे पहले सीमा वाले इलाकों में बंकर बनाने की जरूरत है।’ वो आगे कहते हैं, ’अगर पाकिस्तान ऐसी शरारतें करता रहेगा तो अभी भीख मांग रहा है, आगे और भीख मांगकर मरेगा। इतनी बमबारी में पैसा खर्च होता है। दोनों तरफ की अवाम मारी जा रही है, ये पैसा लोगों पर खर्च होना चाहिए।’ ‘जो सीजफायर हुआ, अच्छा हुआ। जो कहते हैं हम कश्मीर लेंगे, वो कश्मीर लेकर क्या करेंगे। अभी हम अच्छी जिंदगी गुजार रहे हैं। अगर अमन होगा तो पाकिस्तान से भी टूरिस्ट आकर यहां के नजारे देख सकेंगे। कारोबार होगा और कश्मीर को भी फायदा होगा। लड़ाई से कोई फायदा नहीं मिलने वाला है।’ घर भले ही बॉर्डर के नजदीक, लेकिन पहली बार देखे ऐसे हालात
8वीं क्लास में पढ़ने वाली सारा फातिमा का घर भी LoC के बिल्कुल नजदीक है। सारा बमबारी के वक्त को याद करते हुए कहती हैं, ‘हम बॉर्डर पर रहने वालों की जिंदगी और अंदरूनी इलाकों में रहने वाले मेरे दोस्तों की जिंदगी में बहुत फर्क है। बॉर्डर पर जब भी तनाव होता है, तब हमारे घर के एक डर के माहौल में जीने को मजबूर हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि कभी भी कुछ भी हो सकता है। ऐसे वक्त में गांव में रहने वाले जो समृद्ध परिवार है, वो दूसरे इलाकों का रुख कर लेते हैं। हमारे आर्थिक हालात इतने अच्छे नहीं कि हम घर छोड़ सकें। लिहाजा, हमारे पास घर में रुकने के सिवा कोई रास्ता नहीं होता। तनाव के हालात में हमने गांव में बने बंकर में ही रहकर जान बचाई।‘ हालांकि, हमारे गांव के एक हिस्से में अब भी बंकर नहीं हैं, वहां रहने वालों के लिए ये वक्त काटना बहुत मुश्किल हो गया। मोहम्मद हमजा हमें अपने घर के पास उस जगह ले गए, जहां आर्टिलरी बम गिरा था। खेत के आसपास लगे पेड़ों के परखच्चे उड़ गए थे। वो कहते हैं, ‘जब घर के ठीक पीछे बम गिरा था, तब आवाज इतनी जोरदार थी कि कुछ देर तक कान सुन्न पड़ गए थे।' वे कहते हैं, ’उन हालात को मैं शब्दों में बयां भी नहीं कर सकता।’ ‘भले मेरा घर बॉर्डर के बिल्कुल नजदीक है, लेकिन मैंने इतने करीब से पहले कभी जंग जैसे हालात नहीं देखे। इतिहास की किताबों में ही जंग के बारे में पढ़ा था। अब समझ आता है कि जिन लोगों ने जंग के दौर देखे हैं, वो कैसे हालात और किस खौफ के माहौल से गुजरे होंगे।’ गांव में और बंकर बनें ताकि हमें घर न छोड़ना पड़े
रास्ते में हमें LoC के पास रहने वाले अंजुम महमूद मिले। वो पेशे से वकील हैं। अंजुम कहते हैं, ‘जंग के हालात में हम अपनी जान बचाने के लिए जम्मू की तरफ भागे। कोई अपने रिश्तेदार के यहां गया, कोई होटलों में जाकर रुका रहा, क्योंकि हमारे इलाके में इतने बंकर ही नहीं है।‘ इस वक्त इन इलाकों में सबसे ज्यादा जरूरत बंकरों की है। गांव और मोहल्लों के स्तर पर 100 लोगों की क्षमता वाला कम से कम एक बंकर बनना चाहिए। ताकि हमें जंग के हालात में पुंछ छोड़कर न भागना पड़े। ‘बॉर्डर पर पिछले दिनों जैसे हालात बने, आगे उससे बचने के लिए सबसे ज्यादा इसी की जरूरत है।‘ सीजफायर की बात पर अंजुम कहते हैं, ‘पहले भी कई बार सीजफायर हो चुका है, लेकिन पाकिस्तान हर बार इसे तोड़ता रहा है। ऐसे में जरूरी है कि हमें पहले से अपनी तैयारी करके रखनी चाहिए। ताकि अपने लोगों की जिंदगी को पहले से सुरक्षित कर सकें।’ बंद पड़ा चक्कन दा बाग- क्रॉस LoC ट्रेड सेंटर
करमाडा गांव के आखिरी घर से लौटते हुए हम जिस रास्ते पर थे, वो PoK रावलाकोट से आता है। इसी रास्ते चक्कन दा बाग- क्रॉस LoC ट्रेड सेंटर है। इस ट्रेड सेंटर को 21 अक्टूबर 2008 को औपचारिक रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (Confidence Building Measures) के तहत शुरू किया गया था। इसका मकसद नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले लोगों के बीच आर्थिक सहयोग और संपर्क को बढ़ावा देना था। इस ट्रेड सेंटर के साथ-साथ श्रीनगर-मुजफ्फराबाद मार्ग भी व्यापार के लिए खोला गया था। 2008 से 2019 तक बिजनेस रेगुलर होता रहा। हालांकि, बीच-बीच में आतंकी घटनाओं और बॉर्डर पर तनाव के कारण रुकावटें आईं। फिलहाल ये पूरी तरह से बंद पड़ा है। पुंछ में 42 जिंदा शेल डिफ्यूज किए गए
आर्मी ने जम्मू-कश्मीर के पुंछ में (LoC के पास 42 जिंदा शेल डिफ्यूज किए। ये सभी सीमा पार से हुई फायरिंग के दौरान भारतीय सीमा में गिरे थे। डिफेंस स्पोक्सपर्सन ने बताया कि ये शेल्स बॉर्डर से सटे इलाकों झुल्लास, सलोत्री, धाराती और सालानी इलाकों से मिले थे। ........................ ये खबरें भी पढ़ें... पाकिस्तानी फायरिंग से बच नहीं पाया 13 साल का विहान महताब दीन, जम्मू के पुंछ के रहने वाले हैं। अपनी चोट दिखाते हुए महताब LoC के पास वाले इलाकों का हाल बताते हैं। वे कहते हैं, ‘सुबह से ही धमाकों की आवाजें आ रही थीं। मैंने अपने बच्चों के साथ दीवार की आड़ ले रखी थी इसलिए बच सका।‘ इस बमबारी में पुंछ में 3 महिलाओं और 5 बच्चों सहित 16 लोगों की मौत हुई है। 59 लोग घायल हुए हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट... हार्ट-पेशेंट बेटी को बचाने निकलीं नरगिस पर गिरा पाकिस्तानी रॉकेट जम्मू-कश्मीर में उरी के रजरवानी गांव में रहने वाली नरगिस को बेटी की फिक्र हो रही थी। 14 साल की बेटी को हार्ट की परेशानी है। बाहर पाकिस्तान की तरफ से भारी गोलाबारी हो रही थी। नरगिस को लगा कि बेटी की तबीयत न बिगड़ जाए, इसलिए उन्होंने गाड़ी मंगाई और बेटी को लेकर बारामूला की तरफ चल पड़ीं। बेटी को बचाने निकलीं नरगिस की मोर्टार का छर्रा लगने से मौत हो गई। पढ़िए पूरी खबर...