प्रियंका तो बहाना था महाराज को ललकारना था...
SINDHIYA PRIYANKA CONGRESS

ना काहू से बैर/ राघवेंद्र सिंह
मध्य प्रदेश की चुनावी राजनीति इन दिनों ग्वालियर -चंबल और विंध्य क्षेत्र के बीच केंद्रित हो रही है। ग्वालियर राजघराने और राघोगढ़ के बीच सम्बन्ध सामान्य कम तनावपूर्ण ज्यादा रहे। लेकिन दोनों घरानों के मुखिया जब तक कांग्रेस में रहे उनके तनावों ने मर्यादा की सीमा को छुआ जरूर मगर उसे पार नही किया। अब ऐसा नही है। हालात बदल गए है। कमलनाथ सरकार में कथित रूप से उपेक्षित और सार्वजनिक रूप से 'सड़क पर उतर जाएं' जैसे वाक्यो से आहत महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ नाथ की सरकार गिरा दी थी। इसके बाद राघोगढ़ के राजा रहे दिग्विजय सिंह ने ग्वालियर-चंबल से लेकर उज्जैन तक सिंधिया घराने को चुनौती देने का ताना-बाना बुनना शुरु कर दिया। सब जानते हैं कि दिग्विजय सिंह जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं की जमावट करने में माहिर हैं। कांग्रेस हाईकमान से सिंधिया के खिलाफ फ्री हैंड मिलने पर ग्वालियर में प्रियंका गांधी की सभा को प्रभावी बनाकर साबित कर दिया ग्वालियर के गढ़ में भी महाराज को एक राजा ललकार सकता है। इस दौरान जयवर्धन सिंह ने ग्वालियर संभाग में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व कार्यकर्ताओं से तालमेल के साथ काम कर प्रियंका गांधी की सभा की सफलता के लिए काम किया। इसे संगठन के मामले में उन्हें अपने पिता दिग्विजय सिंह से मिली ट्रेनिग के नतीजे के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों प्रियंका गांधी की जबलपुर की सभा से भी ग्वालियर की तुलना की जा रही है। विश्लेषक कहते हैं जबलपुर की सभा के फीकेपन से उदास कांग्रेस को ग्वालियर ने उत्साहित कर दिया है। दूसरी तरफ भाजपा ने ग्वालियर चंबल क्षेत्र में अपनी रणनीति बदलने पर विचार करने को मजबूर किया। ऐसा लगता है आने वाले दिनों में सिंधिया के साथ नरेंद्र सिंह तोमर की जोड़ी ग्वालियर क्षेत्र में मैदानी स्तर पर काम करेगी और सिंधिया समर्थक नेता कार्यकर्ताओं को भाजपा में मिश्री की तरह घुल जाने की हिदायतें भी मिलेंगी। दिग्विजयसिंह की संगठन शक्ति ने भाजपा के दिग्गजों को चिंता में डाल दिया है।
एक जमाने में मध्यप्रदेश के वरिष्ठ नेता रहे अर्जुन सिंह की संगठन क्षमता के पीछे दिग्विजय सिंह बुनियाद के रूप में काम करते थे और उनके सहयोगी होते थे पूर्व मंत्री हरवंश सिंह। उम्र के जिस पड़ाव पर उस लिहाज से लगता है दिग्विजयसिंह ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है। इससे कांग्रेस का सत्ता में वापसी का रास्ता साफ होगा और उनके पुत्र जयवर्धन सिंह की कांग्रेसजनों के बीच प्रदेश व्यापी नेता के रूप में स्वीकार्यता होगी। इस मामले में कमलनाथ अपने पुत्र नकुलनाथ को स्थापित करने को लेकर थोड़ा जल्दबाजी में दिखते हैं। वे नकुलनाथ को छिंदवाड़ा और महाकौशल में मजबूत करने के बजाए सीधे प्रदेश स्तर पर स्थापित करने में लगे दिखते हैं। ग्वालियर में प्रियंका गांधी की सभा को नकुलनाथ से सम्बोधित कराना भी इसी जल्दबाजी भरी रणनीति का हिस्सा लगता है। पुत्रों की राजनीतिक पकड़ को मजबूत करने के लिए इस समय दिग्विजय सिंह की रणनीति बेहतर समझी जा रही है।
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